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आचार्य राजशेखर की कुल परम्परा :
आचार्य राजशेखर का कुल अनेक यशस्वी विद्वानों, कवियों तथा राजनीतिज्ञों से महिमामण्डित था, अत: उनका व्यक्तित्व भी उनके कुलपरम्परागत पाण्डित्य से ओत प्रोत था। अकालजलद, सुरानन्द, तरल एवम् कविराज आचार्य राजशेखर के वंश के ही कवि थे। आचार्य राजशेखर ने अपनी कुल परम्परा का बालरामायण में स्पष्ट उल्लेख किया है। सर्वगुणसम्पन्न अकालजलद तथा श्रुतिमधुर सूक्तियों के
रचयिता सुरानन्द अवश्य ही पर्याप्त प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके थे। सुरानन्द कवि होने के साथ ही साथ काव्य
शास्त्र के ज्ञाता भी थे। आचार्य राजशेखर ने काव्यमीमांसा में उनके हरण से सम्बद्ध विचारों का उल्लेख
किया है ।2 यह सुरानन्द महाराष्ट्र के ही एक भाग चेदी में राजा रणविग्रह के यहाँ रहते थे 3 आचार्य
राजशेखर आमुष्यायण गोत्र के थे। यह अकालजलद के प्रपौत्र तथा दर्दुक के पुत्र थे। इनकी माता का नाम
शीलवती था। इनके पिता दर्दुक किसी राजा के महामन्त्री भी थे 5 दर्दुक किस राजा के मन्त्रि थे यह स्पष्ट तो नहीं है, किन्तु आचार्य राजशेखर का बाल्यकाल में ही प्रतिहार राजाओं के दरबार में प्रवेश यह तो सिद्ध करने में समर्थ ही है कि उनके पिता मिहिरभोज तथा महेन्द्रपाल के दरबार में ही उच्च पद पर
आसीन रहे होंगे। उनका महामन्त्रि होना यह भी सिद्ध करता है कि संभवतः वे कवि न रहे हों, किन्तु
1 "स मूर्तो यत्रासीद् गुणगण इवाकालजलदः सुरानन्दः सोऽपि श्रवणपुटपेयेन वचसा। न चान्ये गण्यन्ते
तरलकविराजप्रभृतयो महाभागस्तस्मिन्नयमजनि यायावरकुले॥" (बालरामायण, प्रथम अङ्क, श्लोक-13) 2. "ता इमा तुल्यदेहितुल्यस्य परिसंख्याः 'सोऽयमुल्लेखवाननुग्राह्यो मार्गः' इति सुरानन्दः।
(काव्यमीमांसा - त्रयोदश अध्याय) 3. नदीनां मेकलसुता नृपाणां रणविग्रहः। कवीनां च सुरानन्दश्चेदिमण्डलमण्डनम्॥ जल्हण-सक्तिमुक्तावली (4-87) 4. "तदामुष्यायणस्य महाराष्ट्रचूडामणेरकालजलदस्य चतुर्थो दौटुंकिः शीलवतीसूनुरूपाध्याय श्री राजशेखर इत्यपर्याप्त बहुमानेन।"
(बालरामायण, प्रथम अङ्क, पृष्ठ-12) 5. (क) "उक्तं हि तेनैव महामन्त्रिपुत्रेण।"
(बालरामायण, प्रथम अङ्क, पृष्ठ-3) (ख) "सूक्तमिदं तेनैव मन्त्रिसुतेन।"
(बालरामायण, प्रथम अङ्क, पृष्ठ-8)