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________________ [208] प्रतिभा के अभिवर्धन हेतु शास्त्रों के समान ही दूसरों के प्रबन्धों के अनुशीलन की आवश्यकता भी पड़ती है, किन्तु उसमें से केवल अर्थग्रहण करना या उसकी छाया पर स्वयं काव्य रचना करने के लिए समर्थ होना या किन विषयों पर काव्यरचनाएँ नहीं हुई हैं यह जानना दूसरों की रचनाओं के अध्ययन का उद्देश्य नहीं है। प्रारम्भिक कवियों की प्रतिभा के संस्कार एवं विकास तथा बहुश्रुतता एवं व्युत्पत्ति हेतु दूसरों की रचनाओं का मनन आवश्यक है। अर्थहरण : अर्थहरण भी आचार्य राजशेखर के ग्रन्थ में गम्भीर विवेचन का विषय बना है। अर्थहरण विवेचन का कविशिक्षा की दृष्टि से विशेष महत्व है,क्योंकि प्रारम्भिक अवस्था के अभ्यासी कवि अन्य कवियों के काव्य से अर्थग्रहण करके काव्यनिर्माण का अभ्यास करते हैं। प्रारम्भिक कवि को शिक्षा देने के लिए तथा प्रारम्भिक कवि के काव्यनिर्माण सम्बन्धी ज्ञानवर्धन के लिए ही रचित होने के कारण काव्यमीमांसा में दूसरों के ग्रन्थों से किस प्रकार के अर्थों को किस प्रकार से अपने काव्य में ग्रहण करना उचित है इस विषय की शिक्षा दी गई है। आचार्य राजशेखर ने अपने विस्तृत अध्ययन के पश्चात् दूसरों के अर्थों का कवियों के काव्यों में जिस प्रकार से सन्निवेश देखा उसी आधार पर उनके औचित्य, अनौचित्य के निर्देश सहित प्रारम्भिक कवियों की शिक्षा हेतु उनका विवेचन किया है। यह आचार्य का अपना बहुत से विषयों में मौलिक अध्याय है। अर्थहरण का सीधा सम्बन्ध अभ्यासी कवियों से ही जोड़ा जा सकता है। निरन्तर अभ्यास करने वाले कवि के लिए दूसरों के अर्थो अथवा दूसरों के सदृश अर्थों को लेकर काव्यरचना करना दोष तो नहीं है, किन्तु अर्थहरण के औचित्य का ध्यान रखना आवश्यक है। जब कवि महाकवित्व की श्रेणी पर पहुँच जाते हैं उस अवस्था में उन्हें दूसरों के अर्थों की आवश्यकता नहीं होती। केवल अभ्यासी कवि ही दूसरों के अर्थ लेते हैं और उन्हें ही अर्थग्रहण का उपदेश भी दिया गया है, किन्तु अभ्यासी कवि का ही तो विकास महाकवि या पूर्ण अभ्यस्त कवि के रूप में होता है। आचार्य राजशेखर ने दोनों प्रकार के कवियों को स्वीकार किया है-जो दूसरों के अर्थों को ग्रहण करते हैं तथा जो स्वयं मौलिक अर्थो का उत्पादन करते हैं। प्रथम का सम्बन्ध प्रारम्भिक अवस्था के कवि से है और द्वितीय का महाकवि अथवा उत्कृष्ट कोटि के कवि से।
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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