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________________ [203] केवल सामान्य शब्दों के रूप में ही ग्रहण किए गए हों, पूर्व कवि की प्रतिभा से उद्भावित चमत्कार सहित नहीं। यदि हरण किए गए शब्द होने पर भी पूर्व रचना से अलग ही कोई विशिष्ट अर्थ, विशिष्ट चमत्कार दृष्टिगत हो तो ऐसा कवि प्रशंसा का पात्र है, चोर कहलाने योग्य नहीं । अन्यथा स्थिति में हरणकर्ता कवि निन्दनीय है।1 अर्थहरण विवेचन : काव्यनिर्माण में पर प्रबन्धानुशीलन की अपेक्षा: सभी कवि प्रारम्भ से ही महाकवि नहीं होते। प्रतिभासम्पन्न होने पर भी उनकी प्रारम्भिक अवस्था काव्याभ्यास की अवस्था होती है। यह सभी को स्वीकार है। राजशेखर से पूर्व आचार्य आनन्दवर्धन महाकवियों से सम्बद्ध ध्वनि रूप अर्थ के विवेचक ग्रन्थ के निर्माता होकर भी अभ्यासी कवियों की स्थिति को स्वीकार करते हैं । कवि को काव्यरचना करने से पूर्व व्युत्पन्न तथा बहुश्रुत होने के लिए वेदों, शास्त्रों, इतिहास, पुराणादि के ज्ञान की आवश्यकता होती है। आचार्य राजशेखर की दृष्टि में वेदों, शास्त्रों आदि के अर्थों को लेकर काव्यनिर्माण का अभ्यास करना भी कवित्व को जागरूक करने का एक उपाय है। वेदों, शास्त्रों तथा विभिन्न प्राचीन ग्रन्थों के अध्ययन की आवश्यकता तो कवि को काव्य के अर्थ प्राप्त करने के लिए होती है। दूसरे कवियों के प्रबन्धानुशीलन की आवश्यकता भी क्या इसीलिए होती है ? किन्तु ऐसा मानने का तात्पर्य है कि पूर्ववर्णित अर्थ ही काव्य में वर्णित होते हैं। सभी आचार्य यह स्वीकार करते हैं कि जिस कवि के पास प्रतिभा अथवा शक्ति होती है, उसके मानस में अनेक प्रकार के अर्थों का स्वतः उद्भास होता रहता है। नवीन अर्थ की उद्भाविका रूप में प्रतिभा की स्वीकृति सर्वत्र है। आचार्य वाग्भट्ट काव्य के लिए अर्थोत्पत्ति की सामग्री के रूप में मन की एकाग्रता, प्रतिभा और अनेक शास्त्रों में व्युत्पत्ति को आवश्यक मानते हैं। मन की एकाग्रता, प्रतिभा तथा शास्त्र व्युत्पत्ति से सम्पन्न पूर्ण कवि के मानस में अर्थों का उद्भास स्वयं होता रहता है। फिर दूसरे कवियों के काव्यानुशीलन की आवश्यकता कवि को क्यों होती हैं यह प्रश्न विचारणीय है। 1 "उक्तयो ह्यर्थान्तरसङ्क्रान्ता न प्रत्यभिज्ञायन्ते स्वदन्ते च तदर्थास्तु हरणादपि हरणं स्युः" इति यायावरंग काव्यमीमांसा (एकादश अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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