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________________ [182] बसन्त, सहकारमञ्जरी तथा कोयलकण्ठ का सानिध्य : तया व्याहतसंदेशा सा बभी निभृता प्रिये चूतयष्टिरिवाभ्याशे मधौ परभृतोन्मुखी (6-2) नाग, सर्प का ऐक्य : गामधास्यत्कथं नागो मृणालमृदुभिः फणैः। आरसातलमूलात्त्वमवालम्बिष्यथा न चेत् । (6-68) शिवचन्द्र की बालता : दिवापि निष्ठ्यूतमरीचिमरीचिभासा बाल्यादनाविष्कृतलाञ्छनेन। चन्द्रेण नित्यं प्रतिभिन्नमौलेश्चूडामणे: किं ग्रहणं हरस्य (7-35) टीका – (बाल्यादल्पतनुत्वात् ) : शिवचन्द्र की बालता उसके अल्पतन के कारण कभी वृद्धि प्राप्त न होने वाले शरीर के कारण ही मानी गई होगी। मलय में चन्दन : तस्यजातु मलयस्थलीरते धूतचन्दनलतः प्रियक्ल्मम्। आचचाम सलवङ्गकेसरश्चाटुकार इव दक्षिणानिल: (8-25) चक्रवाकवियोग : दृष्टतामरसकेसरस्रजो: क्रन्दतोर्विपरिवृत्तकण्ठयोः निघ्नेयोः सरसि चक्रवाकयोरल्पमन्तर - मनल्पताम् गतम्। (8-32) पश्य पक्वफलिनीफलत्विपा विम्बलाञ्छितवियत्सरोऽम्भसा विप्रकष्टविवरं हिमांशना चक्रवाकमिथुनम् विडम्ब्यते । (8--61)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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