________________
[145]
काव्यशास्त्रीय जगत् का एक पारिभाषिक शब्द है-सैद्धान्तिकों द्वारा स्वीकृत परिभाषा के अनुसार उसके अन्तर्गत केवल विशिष्ट अर्थ ही आते हैं- शब्दादि के प्रयोग से सम्बद्ध नियम नहीं। कविसमय का शाब्दिक अर्थ है कवियों की परम्परा आचार अथवा सिद्धान्त। इस शाब्दिक अर्थ के अनुसार कविसमय शब्द व्याकरण तथा शब्द प्रयोग से सम्बद्ध परम्पराओं का भी वाचक हो सकता है और अर्थ से सम्बद्ध परम्पराओं का भी । किन्तु किसी भी क्षेत्र का पारिभाषिक शब्द केवल उतने ही अर्थ का वाचक होता है, जितने के लिए उसका प्रयोग हुआ हो। काव्यशास्त्र के पारिभाषिक शब्द 'कविसमय' की एक सीमा है जिसका सम्बन्ध केवल विशिष्ट अर्थों के विशिष्ट रूप में निबन्धन की परम्परा से ही है। अतः वामन का 'काव्यसमय' तथा केशवमिश्र द्वारा विवेचित कविसमय के अन्तर्गत शब्दादि के प्रयोग से सम्बद्ध नियम वस्तुतः कविशिक्षा जगत् के उस कविसमय से पृथक हैं जो आचार्य राजशेखर आदि कवि शिक्षक आचार्यों द्वारा स्वीकृत कविसमय हैं। वामन तथा केशवमिश्र द्वारा स्वीकृत इन नियमों को अग्निपुराण के सामान्य कविसमय के अन्तर्गत भी स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह सैद्धान्तिकों के विवाद के परिणामस्वरूप प्रसिद्ध नियम नहीं है। अग्निपुराण के सामान्य कविसमय के अन्तर्गत वे ही विषय आते हैं जो सैद्धान्तिकों के विवाद के परिणामस्वरूप प्रसिद्ध हुए और इसके अन्तर्गत काव्यशास्त्र के रीति, अलंकार, रस, ध्वनि, वक्रोक्ति सम्प्रदायों आदि को रखा जा सकता है- क्योंकि काव्यशास्त्र के क्षेत्र में यह सिद्धान्त सफल सैद्धान्तिकों के विवाद के परिणामस्वरूप प्रसिद्ध माने जा सकते हैं।
अतः राजशेखरादि आचार्यों का कविसमय तथा वामन का काव्य समय दो पृथक् विषय है - एक का आर्थी परम्परा से सम्बन्ध है दूसरे का सम्बन्ध केवल शब्दों से है । काव्यशास्त्र में कविसमय के अन्तर्गत केवल आर्थी परम्परा को ही स्वीकार किया गया है। वामन का 'काव्यसमय' केवल व्याकरणादि के प्रयोग से सम्बद्ध नियम ही है। काव्यशास्त्र का परिभाषिक शब्द 'कविसमय' तथा वामन का ' काव्यसमय' नाम से भी भिन्न है, उन्हें केवल 'समय' शब्द की एकता से समान नहीं माना जा सकता। कविसमय का अर्थ है कवियों के काव्य सम्बन्धी आर्थिक आचार व्यवहार तथा काव्यसमय' का तात्पर्य काव्य के शाब्दिक नियमों से हैं।
•
'कविसमय' शब्द अपने शाब्दिक अर्थ के कारण प्रायः भ्रान्ति का कारण बना है। कविसमय अर्थों से सम्बद्ध परम्पराएं तो अवश्य हैं किन्तु उनका काव्यशास्त्रियों द्वारा कविसमय के अन्तर्गत स्वीकृत