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________________ [146] कुछ विशिष्ट अर्थों से ही सम्बन्ध है। उनसे अतिरिक्त अर्थ यदि पूर्व कवियों के काव्यों में प्राप्त भी हो तो भी उन्हें कविसमय समझ कर अपनाने का औचित्य नहीं है। भ्रम के कारण केवल पूर्व प्रयोगों को देखकर कविसमय से अतिरिक्त बहुत से अर्थ भी कविसमय के समान प्रयुक्त होने लगे तथा कविसमय के रूप में रूढ़ हो गए , किन्तु वे वस्तुतः कविसमय नहीं हैं। अपने कविसमय विवेचन के अध्याय में आचार्य राजशेखर ने दूसरे आचार्यों द्वारा स्वीकृत कुछ कविसमयों का विवेचन नहीं किया है । सम्भवतः उनकी दृष्टि में वे उसी प्रकार के रूढ़ कविसमय रहे हों। आचार्य केशव मिश्र आदि देश, समुद्रादि की संख्या को भी कविसमय मानते हैं। इसको राजशेखर कविसमय के अन्तर्गत नहीं लेते। जैसे भ्रम के कारण कविसमय में अन्तनिर्हित अर्थों के अतिरिक्त अर्थों को भी कविसमय के ही रूप में स्वीकार किए जाने की सम्भावना हो सकती है उसी प्रकार वामन के 'काव्यसमय' को भी कविसमय के सैद्धान्तिक तथा पारिभाषिक स्वरूप पर ध्यान न देने के कारण कविसमय के ही रूप में स्वीकृति सम्भव है । वामन का काव्यसमय पृथक है तथा केवल विशिष्ट अर्थों को ही अपने में अन्तनिर्हित करने वाला काव्यजगत् का विशिष्ट पारिभाषिक शब्द कविसमय पृथक् । कविसमय की राजशेखर द्वारा स्वीकृत परिभाषा का तात्पर्य : ___ आचार्य राजशेखर ने कविसमय की परिभाषा में कविसमय के तीन वैशिष्ट्य प्रस्तुत किए हैं - अशास्त्रीय, अलौकिक तथा परम्परायात अर्थ। शास्त्र विरोधी तथा लोकविरोधी अर्थ का निबन्धन काव्य में अनौचित्य का उत्पादक है। ऐसी स्थिति में कविसमय में निबद्ध अशास्त्रीय, अलौकिक अर्थ की औचित्य से सङ्गति कैसे हो सकती है? इन अर्थों की औचित्य से सङ्गति कराने में राजशेखर की वह मान्यता समर्थ हो सकती है जिसके अनुसार वे कहते हैं "प्राचीन विद्वानों ने सहस्त्रों शाखाओं वाले वेदों का अङ्गों सहित अध्ययन करके, शास्त्रों का तत्वज्ञान प्राप्त कर, देशान्तरों और द्वीपान्तरों का परिभ्रमण 1. "कविसमयशब्दश्चायं मूलमपश्यद्भिः प्रयोगमात्रदर्शिभिः प्रयुक्तो रूढश्च । तत्र कश्चिदाद्यत्वेन व्यवस्थितः कविसमयेनार्थः कश्चित्परस्परोपक्रमार्थ स्वार्थाय धूतैः प्रवर्तितः। काव्यमीमांसा - (चतुर्दश अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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