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________________ [143] विवाद के परिणामस्वरूप किसी विषय का प्रसिद्ध हो जाना तथा एक समान वर्णन, एक समान ही काव्य व्यवहार के आधार पर किसी विषय का प्रसिद्धि प्राप्त करना तथा नियम बन जाना दो भिन्नभिन्न विषय हैं - एक सामान्य कविसमय है दूसरा विशेष । कविसमय का इस प्रकार का भेद सर्वप्रथम अग्निपुराण में मिलता है, किन्तु अग्निपुराण में विवेचित विशिष्ट कविसमय ही आचार्य राजशेखर एवं अन्य काव्यशास्त्रियों के कविसमय हैं, ऐसा प्रतीत होता है। इस प्रकार काव्य वर्णनों से, काव्यजगत् के व्यवहार से जो नियम बनते हैं तथा परम्परा रूप में स्वीकृत होते हैं उन्हें ही कविसमय (अग्निपुराण का विशिष्ट कविसमय) कहा जा सकता है। इन कविसमयों का अनुसरण सभी कवियों के लिए अनिवार्य है, अन्यथा वे काव्य में दोष के प्रतिपादक बन जाएंगे। कविसमयों से सम्बद्ध अर्थों को कवि अपने विवेचन का विषय न बनाएं यह तो सम्भव है, किन्तु कविसमयों से सम्बद्ध अर्थों के काव्य में विवेचन विषय बनने पर उनका कविसमय सिद्ध रूप स्वीकार करना ही कवियों के लिए अनिवार्य है, अन्यथा रूप नहीं । कविसमय का सम्बन्ध-शब्दों से, अर्थों से अथवा दोनों से ? आचार्य राजशेखर की परिभाषा से स्पष्ट होता है कि कविसमय अर्थों से सम्बद्ध परम्पराएँ हैं। आचार्य राजशेखर की परिभाषा तथा कुछ आचार्यों को छोड़कर प्रायः सभी आचार्यों की कविसमय के विषय में स्वीकृत मान्यता के आधार पर यह स्वीकार किया जा सकता है कि कविसमय के रूप में स्वीकृत नियमों का शब्दों से सम्बन्ध नहीं है। जाति, द्रव्य, क्रिया और गुण अर्थ भेद ही हैं और कविसमय में जाति, द्रव्य, क्रिया और गुण से सम्बद्ध रूपों का वर्णन होने के कारण कविसमय अर्थ से ही सम्बद्ध हैं। जाति, द्रव्य, क्रिया और गुण का अपने में अन्तर्भाव करने वाले भौम कविसमय के अतिरिक्त स्वर्ग्य और पातालीय कविसमय भी अर्थ से सम्बद्ध हैं ।
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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