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________________ [142] राजशेखर की काव्यमीमांसा के अतिरिक्त कविसमय की विवेच्य परिभाषा 'अग्निपुराण' में मिलती है। 1 इस ग्रन्थ में कवियों के समुदाचार को कवि समय कहा गया है। सर्वत्र एक रूप में स्वीकृत कवि समय के अग्निपुराण में दो रूप हैं- सामान्य कविसमय तथा विशेष कविसमय सफल सैद्धान्तिकों अथवा कवियों के विवाद के परिणामस्वरूप जो प्रसिद्ध होते हैं वे सामान्य कविसमय हैं। यह सामान्य कविसमय दो भेदों में विभक्त हैं प्रथम सभी सैद्धान्तिकों द्वारा स्वीकृत सामान्य कविसमय एवं द्वितीय कुछ सैद्धान्तिकों द्वारा स्वीकृत सामान्य कविसमय । कवियों के परस्पर व्यवहार अथवा काव्याचार से जो नियम बनते हैं वे अग्निपुराण के विशिष्ट कविसमय हैं। 1. कवीनां समुदाचारः समयो नाम गीयते । 301 सामान्यश्च विशिष्टश्च धर्मवद्भवति द्विधा । सिद्धसैद्धान्तिकानां च कवीनां वा विवादतः 1311 यः प्रसिध्यति सामान्य इत्यसौ समयो मतः । सर्वे सैद्धान्तिकाः येन सञ्चरन्ति निरत्ययम् । 321 कियन्त एव वा येन सामान्यस्तेन द्विधा ।-अस्मिन्सरस्वतीलोके सञ्चरन्तः परस्परम् 1361 बध्नन्ति व्यतिपश्यन्तो यद्विशिष्टः स उच्यते । परिग्रहादप्यसतां सतामेवापरिग्रहात् । 37। भिद्यमानस्य तस्यायं तद्वैविध्यमुपगीयते । प्रत्यक्षादिप्रमाणैर्यद् बाधितं तदसद्विदुः । 38 | कवि भिस्तत्प्रतिग्राहं ज्ञानस्य द्योतमानता । यदेवार्थक्रियाकारि तदैव परमार्थसत् । 39 अग्निपुराण का काव्यशास्त्रीय भाग ( एकादश अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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