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चतुर्थ अध्याय
कविसमय (कविजगत् के परम्परागत प्रयोग)
'समय' शब्द की कोशों में सम्यगेतीति - सम् + इण् गतौ + पचाद्यच् इस प्रकार की व्युत्पत्ति तथा उसके विभिन्न अर्थ स्वीकृत हैं। हलायुध कोश में 'समय' शब्द के सिद्धान्त, कृतान्त, राद्धान्त, काल, शपथ, सवित्, क्रियाकार, निर्देश, संकेत आचार आदि विभिन्न अर्थ हैं ।। वाचस्पत्यम् कोश में समय शब्द का एक और अर्थ है-नियम। 'कविसमय' शब्द के संदर्भ में समय शब्द का आचार, सिद्धान्त
अथवा नियम अर्थ मान्य हो सकता है। कवियों में प्रचलित कुछ अर्थों के विशिष्ट रूप में निबन्धन की
परम्पराएँ, सिद्धान्त, आचार अथवा नियम ‘कविसमय' अथवा 'कविसम्प्रदाय' नामों से अभिहित होते
हैं
आचार्य राजशेखर की दृष्टि में कवियों द्वारा निबद्ध अशास्त्रीय, अलौकिक तथा परम्परायात अर्थो की 'कविसमय' संज्ञा है ?
1. सम्यगेतीति। (सम् + इण् गतौ + पचाद्यच्)
सिद्धान्तः, कृतान्त:, राद्धान्तः, कालः।-------------शपथः, संवित्, क्रियाकार: निर्देशः, संङ्केतः, आचार: 'ऋषीणां समये नित्यम् ये चरन्ति युधिष्ठिर-----इति महाभारते (13/90/50)। 'देशाचारान् समयान् जातिधर्मान् बुभूषते यः सः परावरज्ञः' इति महाभारते (5/33/116)। व्यवहार : 'न तै: समयमन्विच्छेत् पुरुषो धर्ममाचरन्' इति मनुः (10/53)। सम्पत् नियमः, 'अतो भजिष्ये समयेन साध्वी यावत्तेजो विभृयादात्मनो मे' इति भागवते (3/22/18) । अवसरः (10)
(हलायुधकोष) 2 अशास्त्रीयमलौकिकं च परम्परायातम् यमर्थमुपनिबध्नन्ति कवयः स कविसमयः।
काव्यमीमांसा - (चतुर्दश अध्याय)