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________________ [140] विवेचित दिनचर्या कवि के दैनिक कार्यों के कालनिर्धारण का आदर्श रूप है, किन्तु व्यवहार में प्रत्येक कवि के कार्यों का काल निर्धारण भिन्न हो सकता है। अतः प्रहर के आधार पर कवि के कार्य निर्धारण का विवेचन सभी अभ्यासी कवियों को अपने कार्यों को उसके अनुरूप कालनिर्धारण के लिए बाध्य नहीं करता । आचार्य राजशेखर के ग्रन्थ में विवेचित कवि का आवास, परिचारक, परिचारिका, सम्बन्धी एवम् मित्र कवियों की तात्कालिक स्थिति के अनुकूल हैं। सार्वकालिक नहीं। राजशेखर के ग्रन्थ में कवि के आवास का विशिष्ट रूप उपस्थित है। यह पूर्ण सुन्दर प्राकृतिक आवास तत्कालीन अधिकांश कवियों के समृद्ध राजसी जीवन का परिचायक है। सम्भवतः स्वयं राजशेखर आदि कवियों को इस प्रकार के आवास उपलब्ध थे किन्तु सभी कवियों का आवास इस प्रकार का होना चाहिए यह नहीं कहा जा सकता। राजशेखर द्वारा विवेचित आवास का स्वरूप उनके इस सामान्य तात्पर्य को व्यक्त करता प्रतीत होता है कि प्रत्येक दृष्टि से कवि का आवास ऐसा प्रतीत होना चाहिए जहां कवि को पूर्ण मानसिक शान्ति एवं काव्यनिर्माण की प्रेरणा मिल सके। कवि के आवास में वर्णित विभिन्न प्राकृतिक स्थितियाँ कवि की प्रेरणा एवं भावोदय हेतु प्रकृति की उपादेयता की सूचक हैं। किन्तु साथ ही यह भी कहा जा सकता है कि प्रकृति का सामीप्य कवि को किसी विशेष स्थिति में काव्यनिर्माण की प्रेरणा तो दे सकता है अकवि को कवि नहीं बना सकता। कवि बनने के लिए प्राथमिक आवश्यकता प्रतिभा की है, किसी विशिष्ट प्रकार के आवास की नहीं केवल अभ्यास द्वारा कवि बनने वाले कवि के लिए इस प्रकार के आवास की अपेक्षा हो सकती है किन्तु सहज प्रतिभासम्पन्न कवि किसी सामान्य आवास में भी विभिन्न अप्रत्यक्ष विषयों को भी प्रत्यक्ष देखते हुए काव्य निर्माण में समर्थ है। काव्य निर्माण के लिए कविशिक्षा से सम्बद्ध राजशेखर की काव्यमीमांसा का परिपूर्ण विवेचन करने के पश्चात निष्कर्ष रूप से यह कहा जा सकता है कि यह ग्रन्थ अभ्यासी कवियों के लिए जितना महत्वपूर्ण है उतना वास्तविक सहज स्वाभाविक प्रतिभासम्पन्न कवि के लिए - जो केवल रससिद्धि के लिए काव्यरचना करता है- महत्वपूर्ण नहीं है। इसमें काव्यनिर्माण से सम्बन्ध रखने वाले विभिन्न गाँड़ विषयों को अत्यधिक विस्तार दिया गया है।
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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