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________________ [103] 'काव्यमीमांसा' में कविभेद तथा कवियों केगुण आचार्य राजशेखर द्वारा विवेचित काव्य कवि के भेद वस्तुतः उसकी काव्यरचना से सम्बन्द्ध गुण हैं ।1 कवि में अधिक से अधिक काव्यरचना सम्बन्धी गुणों की स्थिति निरन्तर अभ्यास से ही सम्भव है। इसलिए आचार्य राजशेखर द्वारा निर्दिष्ट काव्य कवि के इन भेदों को कवि के अभ्यास से सम्बद्ध विषय माना जा सकता है। : काव्यकवि के आठ विभिन्न भेदों का आधार भिन्न-भिन्न हैं- केवल शब्द सौन्दर्य से युक्त काव्य का निर्माता रचना कवि है । काव्य में शब्दों के विभिन्न प्रयोग की दृष्टि से काव्य कवि का द्वितीय प्रकार शब्दकवि तीन भेदों में विभाजित किया जा सकता है— (क) नामकवि, (ख) आख्यातकवि, (ग) नामाख्यात कवि । नामकवि के भेद का आधार है काव्य में सुबन्त शब्दों का अधिक प्रयोग, आख्यात कवि केवल तिङ्न्त शब्दों का अधिक प्रयोग करता है तथा नामाख्यात् कवि तिङ्न्त तथा सुबन्त शब्दों का समान प्रयोक्ता है। अर्थकवि के काव्य में शब्दों की अपेक्षा अर्थ चमत्कारकारी है- अलंकार कवि रूप भेद का आधार काव्य में अलङ्कारों का ही अधिक प्रयोग हो सकता है। अलंकारों का द्वित्व इन अलङ्कारप्रिय कवियों को दो प्रकार का बना देता है - शब्दालङ्कारप्रिय तथा अर्थालङ्कारप्रिय। अपने काव्य में सुन्दर उक्तियों के प्रयोक्ता उक्ति कवि हैं । मार्गकवि से तात्पर्य उन कवियों से है जो किसी विशिष्ट रीति को ही अपनी काव्यरचना का आधार बनाते हैं । शास्त्रार्थ कवि अपने काव्य में शास्त्र के अर्थो का भी उपयोग करते हैं । 1. यह कविभेद वस्तुतः कवियों को परस्पर पृथक करने वाले भेदक के रूप में नहीं स्वीकार किया जा सकते क्योंकि पृथक् पृथक रूप में यह सभी कवि काव्यरचना की दृष्टि से परिपूर्ण नहीं है । केवल रचना सौन्दर्य से युक्त काव्य के निर्माता कवि को अपने काव्य को श्रेष्ठ बनाने के लिए अर्थसौन्दर्य काव्यमीमांसा में कवि भेद शास्त्रकवि :- तत्र त्रिधा शास्त्रकविः यः शास्त्रम् विधते यश्च शास्त्रे काव्यं संविधते, योऽपि काव्ये शास्त्रार्थं निधते। काव्यकविः काव्यकविः पुनरष्टधा तद्यथा रचनाकविः, शब्दकवि, अर्थकविः, अलङ्कारकविः, उक्तिकवि रमकवि:, मार्गकविः, शास्त्रार्थकविरिति । (काव्यमीमांसा-पञ्चम अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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