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________________ [104] की भी आवश्यकता अवश्य है। रम, भाव, आदि का भी यदि काव्य में समावेश न हो तो केवल अलंकारपूर्णता उसे कृत्रिम तथा आडम्बरयुक्त बना देती है। रमणीय उक्ति के प्रयोक्ता कवि के काव्य में शब्द, अर्थ, अलंकार, रस सभी से सम्बद्ध सौन्दर्य होना चाहिए। इसके अतिरिक्त रस परिपूर्ण रचना करना केवल एक ही प्रकार के कवि के लिए सम्भव नहीं है, क्योंकि काव्य के परिपूर्णत्व तथा श्रेष्ठता की कसौटी उसका सरस होना ही है। सभी श्रेष्ठ काव्य सरस होते हैं तथा सभी श्रेष्ठ कवि सरस काव्य के रचयिता भी। अतः रस प्रयोग के आधार पर कविभेद सम्भव नहीं है। काव्य में शास्त्रीय अर्थ के उपयोग रूप वैशिष्ट्य के आधार पर कवियों को परस्पर भिन्न किया जा सकता है। परन्तु साथ ही यह तथ्य भी उपस्थित होता है कि प्रतिभा सम्पन्न कवि को अभ्यास तथा व्युत्पत्ति के द्वारा ही काव्यनिर्माण से सम्बद्ध परिपक्वता प्राप्त होती है। कवि की कसौटी ही है उसका शास्त्रों आदि में व्युत्पन्न होना। अत: आवश्यकता होने पर सभी व्युत्पन्न कवि काव्य में शास्त्रीय अर्थों का प्रयोग कर सकते हैं और ऐसी स्थितियाँ श्रेष्ठ कवि के काव्य में स्वाभाविक रूप में ही आती हैं, प्रयत्नपूर्वक नहीं। यद्यपि शास्त्रीय अर्थों के अधिक तथा न्यून प्रयोग के आधार पर कवियों को परस्पर भिन्न किया जा सकता है, केवल सुबन्त शब्दों के अधिकांश रूप में प्रयोक्ता, केवल तिङ्न्त शब्दप्रिय कवि अथवा दोनों ही प्रकार के शब्दों में समान रूप से काव्य रचना करने वाले कवियों का भेद सम्भव है फिर भी किसी कवि को केवल शब्द प्रयोक्ता नहीं कहा जा सकता क्योंकि उसके काव्य में अर्थ, उक्ति, रस आदि का भी वैशिष्ट्य अवश्य मिलता है। यद्यपि किसी विशिष्ट रीति में रचना करने वाले कवियों का परस्पर पृथकत्व सम्भव है क्योंकि वैदर्भी, गौडी, पञ्चाली आदि विभिन्न रीतियों में रचना के आधार पर उन्हें पृथक किया जा सकता है किन्तु श्रेष्ठ कवि में भिन्न-भिन्न रीतियों को अपनाने की सामर्थ्य होती है। विपय, रस भेद के आधार पर इसके अतिरिक्त श्रेष्ठ काव्य की कसौटी रूप में सामान्यत: वैदर्भी रीति में रचित काव्य को ही स्वीकार किया जाता रहा है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि इन भेदकों के आधार पर कवि परस्पर पृथक् नहीं किए जा सकते क्योंकि किसी श्रेष्ठ कवि के काव्य में इन सभी विषयों का समावेश न्यूनाधिक रूप से अनिवार्य है। स्वयं
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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