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क्यामखां रासा]
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कमधज कूरम भोमिया, बहु पिरोजकै संग । रांनैहूकै बहुत दल, लरत न राखै अंग ॥३३७।। नागोरी बाटी अंनी, फूल्यो करत कलोल । गोल हिरोल चंदोल पुनि, जरं गोल बरं गोल ॥३३८॥ ताजखानु महमदखां, खरे तमाचै दोइ । देखौं तुम केसी करौ, जैसी तुमते होइ ।।३३९।।
ताजखां महमदखां आगै रांना भाग्यो ॥दोहा॥ चढे कटक दहु अोरते, मिले बजत निसांन ।
घमडंत है मानो घटा, गर्जत है मरवांन ।।३४०।। पहलै तौ गोली चली, और छुटी हथनाल । जिनकी लागी ते परे, ज्यो निकले ततकाल ॥३४१।। बॉन चले दहुवोरके, बहुत रहे गड़ि देह। घाइल औसै लागि हैं, है मांनी येसेह ।।३४२।। घोरे बाहे खांनपर, रानै अधिक रिसाइ । धका सहार न सक्यो, छ टि गये तब पाइ ॥३४३।। भाजि चल्यो पेरोजखॉ, ताकी है नागौर । पाछै आवै लूटतौं, मोकलसी सिरमौर ॥३४४।। चार कोस लौ गैल करि, लैने जो नीसाँन । रान चल्यौ चीतोरकौ, चितुमै करत गुमॉन ॥३४५।। ताजखानुं महमदखां, ठाढ़े वाही खोज । रहे तमाचै ही खरे, भाजि गयो पेरोज ॥३४६।। नागौरीकौं भाजतै, नैक न लागी बार । झांकत ही भइया रहे, कहा करै करतार ॥३४७।। सोच रहे दोउ खरे, रानौ निकस्यो आइ । ज्यौ चीतौ नगको तक, परे रोसमे धाइ ।।३४८।। लरि बिचर्यो सीसौदियो, जब हि पर्यो घमसांन । दे अपने पेरोजके, नेजे पुनि नीसांन ॥३४६।।