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क्यामखां रासा]
खिजरखांन पै ना गये, रह्यो वुलाइ बुलाइ । वैठे रहे हिसारमै, कर्यो जूहार न जाइ ॥३१॥ जवहि भयो बस कालके, खिजरखांनु पतिसाह । तबहिं मुबारक साहको, दीनौ राज इलाह ।।३१२।। खिजरखांक बंसमै, नाहिन सुनिये कोइ । किर्तघनीको जानिये, कवहु भलौ न होइ ॥३१३।। मुवो मुवारक तव भयो, जगमहमद फरीद । पतिसाही करि मरि गयो, जवही काल रसीद ॥३१४।। ताकी नंद अलावदी, दीनौ राज इलाह । भयो अमानतखाँ बहुरि, पूत मुवारक शाह ।।३१५।। ता पाछै बहलोल हुव, दिली महि सुलतान । लोदी अपनी भुजन वलु, साध्यौ हिदस्तान ॥३१६।। ढोसी ऊपर अखन है, दिली साहि बहलोल । वदै न नंदन क्यामखां, परे दहुनमै बोल ॥३१७।। पातिसाहि पैराकके, तुरग मंगाये याहि । इत निकसे तब अखन नं, नौ चुनि लीने चाहि ॥३१८॥ बात सुनी वहलोलन, कहि पठयो रिस मांहि । मेरौ मारग देखीयौ, जौ असु पठयो नांहि ।।३१६।। अखन लिख्यो वहलोलसों, मेरै घोरे लाख । पै मै तेरे लये है सो, जुद्धकी अभिलाप ॥३२०॥ मोको इतही पाइये, जब जानहि तव आव। ढोसी चले न हो चलौ, गिरको गह्यो सुभाव ।।३२१।। पातसाह अति पर्जर्यो, सुनि अक्खनके बोल । पै कछु बल नाहिन चल्यो, बैठि रह्यो बहलोल ।।३२२।। वावंन वर अक्खन करी, पात पात मेवात । मेवाती भाजत फिरै, ज्यों रवि आगै रात ॥३२३।।