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[कवि जान कृत राजा अरु परधान पुनि, जबहिं हौहि सम दोइ। पहलै हनै सु हनत है, पाछै कछु न होइ ॥२६६।। यह मनमै समझी नही, दिली दई करि प्यार । कोउ विरवा लाइक, डारत नांहि उखार ॥३००।। येक द्योंस तो क्यामखां, ठाढ़े हुते सुभाइ । खिजरखांनु दीनौं धका, परो नदीमें जाइ ॥३०१।। निकसि गयो ज्यों परत ही, खरो रह्यौ इक पांन । संतत कर रहि है खरी, इक खांडै अरु दांन ॥३०२।। मतौ कर्यो हौ खिजरखां, सो जानत हौ खांन । मैं पतिसाहनिसौं लरे, होत धर्मकी हानि ॥३०३।। जीयो बरस पचांनुवै, क्यामखानुं चहुवांन । बड़े २ साके करै, गनत न आवै ग्यांन ॥३०४।। साके क्यामलखांनके, सागर अपरंपार । जो मोको आवत हुते, ते मैं करे बिचार ॥३०॥ क्यामखांनकी बातकौ, कर्यो नही बिस्तार । भाखै है मै सुलप अति, अपनी मति अनुसार ॥३०६।। हतौ हजीरौ दिल्लीमैं, कीनौ काइमखानुं । लै उत राख्यो छत्रपति, देके आदर मांनु ॥३०७।।
श्री दीवान ताजखांके पुत्र । १ फतिहखां, २ रुका, ३ फखरदी, ४ मोजन, ५ इकलीमखां, ६ पहाड़ा।
फतिहखांन मोजन रुका, फखरद्दी इकलीम । और पहारा है छठौ, ताजंन सुत बलभीम ॥३०८।।
ताजखांको बखान पांच पुत्र है क्यामखां, सुनि पिताकी बात। विषधर कैसे जान कहि, निस बासुर बल खात ॥३०६।। ताजखानु महमदखां, कुतवखांन इखतार । मौनुखांनु पाचौ सुभट, अरिदल भजनहार ॥३१०॥