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क्यामखां रासा]
क्यामखां खिदरखां पठाणसू जुध करत ॥ दोहा ।। अप वसि करि नागोरको, चलो दिल्लीकी वोर ।
खिजरखांनु पुनि क्यामखां, दल बल साजे जोर ।।२८६।। यह कहनावत कहत है, तवते सकल जहांनु । दील्ली थोरे कागुरे, वहु दल लायो खानु ।।२८७।। सुनी बात यहु खिदरखां, आयो काइमखांनु । खिजरखांनुकौ संग लै, देत बहुत नीसांन ।।२८८।। चढ्यौ खिदरखां दिल्लीते, दल वल साजि अपार । इत उतके कवि जान कहि, जूज्झन लगे जुझार ॥२८६।।
॥ नाराइच छन्द ॥ चढ़े जुझार मारके, बदै न घाव सारके । लरे कट हटै नही, मरै परै जही तही ।।२६०।। करी करी लरे मरे , तुरी तुरी किते परे । सुभट्ट ठट्ट खेतमें, सु घूमि है अचेतमैं ॥२६१।। मुवो सर्ब साथ ही, रह्यो न प्रान हाथ ही ।
चल्यो पठान भज्जिकै, दयो न जीव लज्जिकै ॥२६२।। ॥ दोहा ॥ जीते काइमखांनजू, भाज्यो खिदर पठांन ।
खिज रखांनुकी वाहि गहि, तखत बिठायो आन ॥२९३।। सबही बात समत्थ है, क्यामखानु चहुवान । जाकै सिरपर कर धरै, सो दिली सुलतॉन ॥२६४॥ खिजरखान पतिसाह हुव, करै दिलीमै राज । चिता कछु नाहिन रही, पूरै सव मन काज ।।२६५।। खिजरखांनुको रैन दिन, सुखही मांहि विहात । क्यामखानु अरु पाप विच, तीसर नाहिं समात ॥२१६॥ पाछै मूरिख खिजरखां, यह समुझि जिय मांहि । क्यामखानुं बलवंतु है, पतियारौ कछु नांहि ।।२६७।। चाहं ताकी काढि है, राखै जानै जाहि । महावली उमराव है, रहन न देही याहि ।।२६८।।