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________________ क्यामखां रासा ] ॥ नाराइच छंद ॥ ही । ही । पाव ही । चावही || २६३ || सार मार चढ़े मूछार सूरवां, बजंत सार लरंत जोध जोधसों, ररंत मार भई सुरंग भोम है, कटंत हाथ सुभट्ट सीस टूटिहै, मिटै न चित्त कटें परै उठे लरै मरे बिना बदै न घाव चोटकौ, छतीस प्रवधै नहीं रहे । सहै । जबै कटंत है । है ॥ २६४ ॥ परैं हथ्यार हाथतै, भुजा तबै सुभट्ट सूरिवां, करै परे करी तुखार है, लरे गने गने न जात है, अपार ते अपार है खरे महेस जुग्गनि, अनंद चैनमे हस । गिरिज्भ ग्रसमानते, सु देखि देखिकं धंसे ॥ २६५ ॥ हथ्यार देत मरे जुझार है । 1 ॥ दोहा ॥ जबहि कटक दहुं औरके, मरे परे घमसांन । तब दलमेंते निकसिकै, चलि आयो अगवांन ॥ २६६ ॥ क्यांम क्यांमखां ही करत, अरु डारत केकांन । इतते निकस्यो क्यामखां, चक्रवती चहुवांन ॥ २६७॥ बरछी बाही मौजदी, हन्यो क्यामखां बांन । ये राखे करतार नै पर्यो भोंम अगवांन ॥ २६८ || काइमखा चहुवांननै लये मौजदी मारि । दुलहु बिन न जनेत ह्वै, भाज चले दल हारि ।। २६ ।। सब दल लूट्यो क्यामखां, जीते करी तुखार | दले दमामे जैतके, उपज्यौ चैन अपार ॥२७०॥ सुनी बात यहु खिदरखां, काटि काटि कर खाइ । मेरे दल बल जिन हनें तास लरिही जाइ ॥ २७१ || रैन दिना चिता करै, किहि बिधि लरियें जाइ । क्यामखानुकी धाकतै, चलत बहुत अरसाइ || २७२॥ २३
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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