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क्यामखां रासा ]
खिदरखां दिल्ली रहत, मरद मुंछार पठान । मानस सहस पचास ढिडु, सवही येक समान || २३८ || तिमरलंग जब उठि गये, मलू सुनी यहु बात । खिदरखांनुकौ नां बदै, फूल्यौ अंग न मात ||२३|| तब दल बल बहु साजिकै, दिल्ली घेरी आइ । खिदरखांनु ठटु कटक करि, लर्यो सनमुख जाइ ॥ २४० ॥ जूझि गये सूरा सुभट, भार पर्यो जब आइ । मलू भाजि नाहिन सक्यो, मरचो परचो भुमि जाइ ।। २४१ || जीते हैं दल तिमरके, मार्यो मल्लूखांन । खिदरखांनु फूल्यो फिरे, करिहै गर्ब गुमान ॥ २४२ ॥ जवहि मलूकी वोरते, भयो नचित पठांन । बस कीने सब भोमिया, बदत न काहू न || २४३ || सुलताननिकौ नां बदै, क्यामखांनु चहुवांन । बात सुनी जहु खिदरखां, बाढी अधिक रिसान || २४४ || खिदरखांन फुरमांन दिय, मोजदीन मार बांधिकै काढिदै, क्यामखांनु
अगवांन । चहुवांन ॥ २४५ ॥
क्यामखां मोजदी जुध करत
है
|| दोहा || रुहतक झज्झर जनम भुमि, मोजदीन गवांन । फौजदार लाहोरकौ, है दल वल अनग्यांन ॥ २४६ ॥ उन कहि पठयो क्यामखां, छाडहु कोट हिसार । जो तुम गहर लगाइ हौ, हमहि न लागे वार ॥ २४७ ॥ पातसाहको नां बदहि, सेवा करन न जाहि । बिनही दीनी बावनी, कहियो किहिं बल खाहि ॥ २४८ || तबहि क्यामखां यों लिख्यो, सुनि ग्रगवान गिवार । को काहूकौ देतु है, दैनहार करतार ॥ २४९॥
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