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क्यामरखां रासा]
इतहि
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॥ भुजंगी छंद जुगंम विधि ॥ चढ़े क्यामखानं , लये कर दुधारी ।
चाहुवांन , उतहि मुगल भारी ।।१७०।। बजे सुर नीसानं , सु जुझ जुझारी। गहै कर कमानं , चलावै ततारी ॥१७१।। लर सुभट जोरै , सूत रने किसोरे । सहें झकझोरे, मुरे नहिं मोरे। फिरे ना वहोरे , करै रज तोरे । हने गैद घोरे , रहे आइ थोरे ॥१७२।। लरे बहु जुझारी, मरे जोध सूरा। अरुन भौम सारी , भयो जुद्ध पूरा। लगे हाथ भारी, गयो छूटि गरूरा। मुगल सैन हारी , चले भाजि भूरा ॥१७३।। लर्यो चाहुवॉन , सुजस जगत सबही । पगनि गज केकानं , गये मुगल दवही । सुन्या सुलतानं , जित्यो खांन जबही।
दयो संनमान , वढयौ वहुत तबही ॥१७४।। ॥दोहा॥ मुगल लरे सो मरि परे, उबरे गये जु भाग ।
खल दादूर हैं बापुरे, क्यामल कारो नाग ।।१७५।। औराकी तुरकी तुरग, लूट्यौ दरव अनेक । सब पठये पतिसाह ढिगु, आप न राख्यो एक ।।१७६।। आनंदित है छत्रपति, दीनों प्रादुर मांन । क्यामखांनको नाम तव, राख्यो खानु-जहांन ॥१७७।। मद गइंद अरबी तुरक, अपतनको सिरपाव । मनसव बहुत बढ़ाइकै, कर्यो बड़ी उमराव ॥१७८।। जौ लौ जीयो जगतमै, फेरोसाह सुलतांन । तो लौ दिन दिन ही बढ्यो, क्यामखांनको मांन ।।१७९॥