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[ कवि जांन कृत
कह्यो सुंनहुं तुम सगरे भाई । क्यामखानुंकौ दई बड़ाई । यहु तुममें कीनौ सिरमौर । याकौ समझौ मेरी ठौर ।। १५८ ।। क्यामखानुंसौ ये सिख भाखी । इनकौं बहुत प्यारसौं राखी । सिखदे मीरां कलमां कह्यौ । या कल मैको अमर न रह्यौ ॥ १५६ ॥ मीरां भये जबहि बस काल । लह्यो क्यामखां मनसब माल ॥ १६०॥ ॥ दोहा ॥ पातसाह किरपालु है, दै हय गय सिरपाव । दई बावनी क्यामखां, कर्यो बड़ौ उमराव ॥१६१ ॥ ठटा लेंन जौ ऊपज्यौ, पातसाह क्यामखानुंकी मया करि, चले फौजदार करि क्यामखां, सौपी आपुन दलबल साजिकै, चले देस देस वतिया चली, पातसाह घर नांहि । बिना क्यामखां और को, रह्यो न दिल्ली मांहि ॥ १६४ ॥
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अभिलाष ।
दिलीमै राख ॥ १६२ ॥ दिल्ली ताहि । ठटाकौ साहि ॥ १६३ ॥
क्यामखांन मुगलनिसौं युद्धकरत है
|| दोहा || मुगल बिलायत ते चले, हिद लैनके चाइ । छलके बलसौ जांन कहि, दिल्ली घेरी आइ ॥ १६५ ॥ सुनत बात यह परजर्यो, क्यामखानु चहुवांन । सौह आये लरनकौं, दै सतसौ नीसान ॥ १६६ ॥
ऊस, कादूर तन थहरान ।
सुभट सबद सुनि धौं धौं धौं धौसा करें, धौकत पावहु जान ॥ १६७ ॥
॥ सवैया ॥ बहु सैन बनाइ चढ्यो चहवांन, निसान लये अरिमारनकी । अब जैसे गजिद नरिंद चल्यो, विटपी खल मूर उखारनको । प्रतिही बलवंत करे करता कर, दंतीके दंत उपारनकौं । परिहैदलमें इमं क्यांमलखां, जिम चीतो चलै म्रिगडारनकौ ।। १६८ ।।
॥ दोहा ॥ दिली बिलाइत लरत है, परत महा घमसान | येक वोर जु मुगल, येक वोर चहुवान ॥ १६६ ॥