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क्यामखां रासा ]
तिहुंनपाल सुत ऊपज्यो, मोटेराइ सकाज ।
निस बासुर सुखसों कीयौ, ददरेवैमे राज ॥ ११६ ॥ ताकै उपज्यी करमचंद, प्रकट भयो सब ठांव । तुरक करची पतिसाहजू, धरयो क्यामखां नांव ॥१२०॥ मोटे राके चार सुत, क्यामखांन भोपाल | और जैनदी सदरदी, हिन्दू रह्यौ जगमाल ॥१२१॥
श्री दीवान क्यामखान पुत्र - ताजखां १, महमदखां २, कुतुबखां ३, इखतियारखां ४, मोमनखां ५ | क्यामखांनको बखांन
|| चौपाई ॥ करमचंदकी बरनी वाता, कैसे कीनौ तुरक विधाता । कुवर करमचंद खेलत डोलत । अधिक सिरिस्ट वचनमुखबोलत ।। १२२ ।। येक द्यौ सवहु चढ़यो हेरें । भाई वंधव हे बहु नेरें । सावर हरंन रोझ बहु पाये । गहिवेको सवहि ललचाये ॥ १२३ ॥ आप आपको सव उठि धाये । भूलि परे वनमें भरमाये । सबै हेरें के मदमाते । आप आपको डोले होते ॥ १२४ ॥ करमचद इक विरछ निहार्यौ । बैठ्यौ जाइ हुतौ प्रतिहार्यो । घोरा बांधि डारि सकलात । पौढ्यो कुंवर दैन सुख गात ।। १२५ ।। आई नीद गयो तब सोइ । ढरि गइ छांह दुपहरि होइ । फेरोसाह दिली सुलतांन । चारौ चकमै जाकी आन ॥ १२६ ॥ उतरे हे हिसार में आइ । इक दिन चढ़े अहेरै चाइ । आवत आवत उहि ठा आये । कुंवर बिरछतर सोवत पाये ।। १२७ ॥ सकल विरछ छइयां ढरि गई । वा तरवरकी दूरि न भई । पातसाह अचरजकी वात । देखि देखि अति ही भरमात ॥ १२८॥ नासिर सैद बुलायी पास। जो देखी सो कर्यो प्रकास । अचरज रहे सैद पतिसाहि । महापुरुष कोउ यहु ग्राई ॥ १२६ ॥ कह्यौ जगाइ पाइ इह लागे । सूते भाग हमारे जागे । साहस करिकै कुंवर जगायौ । हिदू देख बहुत भरमायौ ॥ १३०॥
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