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[ कवि जांन कृत
छिड़ाई ठौर ।
अंत कलाही कन्ह, ग्राइ तव राजा अमरा भयो, चाहुवांन सिरमौर ॥ १०६ ॥
बछरा ये चार ।
अमरा अजरा सिधरा, पुनि कन्हरदेके पुत्र है, प्रगट भये अजराते चाहिल भयो, सिधरा जौर जहांन । बछराते मोहिल भये, अमरेते चहुवांन ॥ १०८ ॥ ग्रमरा सुत जेवर भयो, राज कर्यो जग मांहि । अंत मर्यो या जगतमे अमर अजर को नांहि ॥१०६॥ ताकै गूगा वैरसी, सेस धरह ये चार |
राज कर्यो केतक वरस, अंत तज्यो संसार ॥११०॥
संसार ॥१०७॥
गयो अऊत |
धरहके पूत ॥ १११ ॥
सोनंद बखान ।
कीयो अदभूत ॥ ११४ ॥
गूगँकै नानिग भयो, सेस सु कहत जोन भोथर भरह, भये उदराज सुत बैरसी, तिह सुत केसोराइ हैं, विजैराज हरराज जुग, है सतत हरराजकी, पर्वतमें कहि जान ॥ ११३ ॥ विजैराजकै जांन कहि, भयो पदमसी पूत । प्रिथीराज ताकै भयौ, राज लालचंद ताकै भयौ, वाकै अजै जु चंद | याकै सुत गोपाल है, हरनहार दुख दंद ॥ ११५ ॥ तिह सुत उपज्यो जैतसी, समसर करै न कोइ । पुंनपाल ताकै भयो, पुंननिहि सुत होइ ॥ ११६ ॥ मूलराज मल असरथ, दौका सांगा जानि । रातू पातू और महियल, सुत जैत वखानि ॥ ११७ ॥ पुंनपालकी रूप है, तिहुंनपाल या
रावन है सुत ताहि ।
भयौ,
लाज
जसराज ।
ताको सुत समरथ सगरें काज ॥ ११२ ॥
गोतकी ताहि ॥ ११ ८ ।।