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[ कवि जांन कृत
हिंदू मांहि न होइ करामत । इन कैसे कै पाई न्यामत | सैद कह्यौ ऐसी जिय प्रावै । अंत पंथ तुरकनि यहु पावै ॥१३१॥ पूछयौ तव हि कहा तुव जात। रहत कहां साची कहु बात । ददरेवा रहिबेको ठाँव । मोटेराव पिताको नांव ॥ १३२ ॥ बस हमारी है चहुवांन । नाम करमचन्द कहत जहांन । पातसाहनें निकट वुलायौ । बहुत प्यारसौ गरेँ लगायो ॥ १३३ ॥ कयो संग मो चलि चहुवान । दे हो तांकी प्रदर मांन ॥ १३४ ॥ ॥ दोहा ॥ कर्म चंदते फेरिके, धरयो क्यामखां नांम । पातसाह संगहि लये, आयो अपनी ठांम ॥ १३५ ॥ || चौपाई ॥ तब हि सैद नासर यों कह्यौ । तुम मेरे भागन यहु लह्यो । मोकौं देहु जुयाहि पढ़ाउ । तुम लाइक करि तुमपैं लाऊं ॥ १३६॥ पातसाह भाख्यो यहु भाख । पायौ रतन जतन सौ राख । क्यामखांन संग चढ़े हेरे । ते सब गये आपुनै डेरें ।। १३७।। करमचंद घर आयो नाही । रोर परी ददरेवै मांही । येक परेवा सैद पठायो । ये ते मांहि लैन वहु आयो । १३८ || मोटाराजा गयो हिसार । पातसाह कीनौ बहु प्यार । कह्यो करमचद मोको देहु । जो भावै सो बदली लेहु ॥ १३६ ॥ तुरक भयेकी करिहून चिंत। याकी राखो ज्यो सुत मित । याक करिही पंच हजारी। साँचु कहत ही बांह हमारी ॥ १४० ॥ कर तसलीम कह्यो यों राइ । दिलीपति जो करे सु न्याइ । जो सेवा करिहै सो बढ़िहै । सोई फूल महेसुर चढिहै ॥ १४१ ॥ पातसाह दे सरपाव । बिदा करयो डेरेको राव | पातसाह दिल्लीको धायो । क्यामखांनु तब सैद पढ़ायो ॥ १४२ ॥ द्वादस हे मीरांके नंदन | तिनमें क्यामखानु जग बंदन । येक ठौर पढ़न ये जाहिं । भोरे लरिहं प्रापुन मांहि ॥ १४३ ॥ रोवत लरत येक दिन जात । बालक आपुन मांहि रिसात । कुतुव नूरदी नूरजहाँन । हांसीते बैठे हैं ांन ॥ १४४ ॥
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