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क्यामखां रासा]
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ताको महलाइल सुत, रूपवंत कहि जांन । वाको देखन आइ है, मिलि मिलि सकल जहांन ॥२४॥ यजद ताहि नंदन भयो, दयो न करता ग्यांन । अपने घरमंहि छांडक, पंथ चलायो आंन ॥२५॥ भयो यजदकै जान कहि, पैगांबर इदरीस । डंकरि कैफिरि यों करै, ये चरित्र जगदीस ॥२६॥ साठ पंच अरु तीन सौ, बरस रहयौ जग मांहि । अजहू जीवै सुरगमैं, मरै प्रलै लौ नांहि ॥२७॥ ताको सुत मसतूस लख, धर्म छाडि जिन दीन । लमक भयो ताको नंदन, बहु पुनि सेवा हीन ॥२८॥ ताकै नूह नबी भयो, नौ सै बरस पचास । धरम पंथ सब जगतमें, नीकै कर्यो प्रकास ॥२६॥ प्रगट बात है नहकी, सब ग्रन्थनिकै मांहि । मै ताते कबि जांन कहि, यामैं अांनी नांहि ॥३०॥ तीन भये सुत नूहकै, सुनि लै तिनको नाम । लघु याफस मधि हांम है, बडड़ी जांनी सांम ॥३१॥ अरबी रूमी सांमकै, पुनि ईराक खुरसांन । अरबी ताई अस अरी, अजदी अरु मसरांन ॥३२॥ अरां अरमन पारसी, भये जु नबी जहांन । सकल सामकै बंसमै, अरु चहुवांन पठांन ॥३३॥ और हांमकै बसमै, येती जात बखांनि । उजबक हिदी बरबरी, हबसी कुवती जांनि ॥३४॥ याफस ते सकलाबके, परतासी यों मांन । फिरग रूस चगता तुरक, चीमां चीन पिछांन ।।३।। साम बड़ो सुत नूहको, धरम पंथ गहि लींन । इमन भयो ताको नंदन, कोइ बात न हीन ॥३६ ।।