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[कवि जान कृत धर गिरवर सागर रचे, पाछे दानव देव । अंत रचे मानस अलख, कहत न आवहि भेव ॥११॥ जबहि भयौ करतारको, मनुष रचनको चाइ। तब पहले जिनकौ] कीयो, सुनहु कथा चित लाइ ॥१२॥ कहत जांन कवि जानियो, ग्रथनिको मत गांव । माटीत पैदा भयौ, तातें आदम नांव ॥१३।। मांनस भये जहांनमै, ते सगरे कहि जांन ।
आदम पाछै आदमी, हेंदू मुसलमांन ॥१४॥ येक पिड इन दुहुँनको, नां अन्तर रत चांम । पै करनी नाहिन मिल, ताते न्यारे नाम ॥१५॥ बातें बहु संतत भई, गनती आवत नाहि । आदम बरस सहस लौं, जीयो जगती मांहि ॥१६॥ आदम पैगंबर भयो, प्यार कीयो करतार । पहले बैकुंठ राखक, फिर पठयो संसार ॥१७॥ जिते पुत्र आदम भये, सबमै टीकौ सीस । हूर बरी हूवो नबी, दया करी जगदीस ॥१८॥ नौसै बारह बरस लौ, सीस रहयौ जग मांहि । सेवा करताकी करी, चुख अरसायो नांहि ॥१९॥ भयो सीसकै जान कहि, बडड़ो पुत्र उनूस । निस बासुर करतारकी, सेवा करी अदूस ॥२०॥ नौसै पैसठ बरस लौं, भयो न जगते दूर । याते उपज्यो जगतमै, तरवर तरल खजूर ॥२१॥ भयो जु पुत्र उनूसक, नांव ताहिकी नांन । नौसै बासठ वरस लौ, सुखरसु कीये जहांन ॥२२॥ नीके मंदिर कोट गढ़, उपजै जगती मांहि । सो याहीते जान कहि, पहले जानत नांहि ॥२३॥