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क्यामखां रासा
अथवा
रामा श्री दीवान अलिककांका
॥ दोहा । सिरजनहार बखानिहौं, जिन सिरज्यौ संसार ।
खं भू गिर तर जल पवन, नर पस पंछी अपार ॥२॥ येक येक ते जात बहु, कीनी है जग मांहि । अनत गोत कवि जान कहि, गनती आवत नांहि ॥२॥ दोम महंमद उच्चरो, जाकै हितकै काज । कहत जांन करतार यहु, साज्यौ है सब साज ॥३॥ कहत जान अब बरनिहौ, अलिफखानकी जात । पिता जान बढिनां कहौ, भाखौ साची बात ॥४॥ अलिफखानु दीवानको, बहुत बड़ी है गोत । चाहुवांनकी जोटको, और न जगमै होत ॥५॥ अलिफखानकै बंसमें, भये बड़े राजांन । कहत जांन कछु येक हौ, सबको करौ बखान ॥६॥ बात अलिफखांकी कहौ, सब पाछै कहिं जांन । किहि बिधि जीये जगतमैं, कैसे मरे निदान ।।७।। बड़े बड़े साके कीये, अलिफखांन जग मांहि । पातसाहकै कामको, ज्यों पुनि राख्यौ नांहि ॥८॥ नूर महंमदको रच्यो, पहले सिरजनहार । ताहीते कवि जान कहि, भयो सकल संसार ॥९॥ तौ नभ रबि तारे ससि, सुरग नूर तें कीन । रचे फिरसते नरके, करे नबी आधीन ॥१०॥