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दौलतखां रचित हिन्दी वैद्यक ग्रन्थ फतेहपुरादिमें खोजने पर संभव है इसकी अन्य पूर्ण प्रति भी उपलब्ध हो जाय । आशा है, आयुर्वेद एवं हिन्दी साहित्यके प्रेमी सज्जन अन्वेषण कर इस प्रन्यके सम्बन्धमें विशेष प्रकाश डालनेकी कृपा करेंगे।
हिन्दी भाषा व आयुर्वेद चिकित्सा पद्धतिका प्रचार दिनों दिन बढ़ रहा है, पर खेद है कि अभी हिन्दी भाषामें इस विषयके अन्य बहुत ही कम प्रकाशित हुए हैं। यह हिन्दी साहित्यके लिए उचित नहीं है। इन अन्योंकी विक्री भी अच्छी हो सकती है, अतः साहित्य सम्मेलन, नागरी प्रचारणी सभा श्रादि संस्थाओं व अन्य प्रकाशकोंको वैद्यक सम्बन्धी ग्रन्यों के प्रकाशनकी ओर शीघ्र ध्यान देना चाहिए।
क्यामखानी दीवानोंके समयके शिलालेख संतकवि सुन्दरदासके स्थान पर सं. १६८८ फा. व. ६ बुधवारका लेख लगा हुश्रा है जिसका फोटू सुन्दर अन्यावलीके जीवन चरित्र पृ. १२० में छपा है। दौलतखाँ व ताहिरखाँका उल्लेख इस प्रकार है
ढीली पति जहाँ सुत, राजत शाही जहान ।
दौलतखां नृप फतेहपुर, ता नन्दन ताहिरखान । ताहरोको, राठौर अमरसिहके शाही दरबारमें सलायतोको मार कर स्वयं मर जाने पर सम्राटने नागौरका परगना दे दिया था। वहाँ पहुंच कर ताहरखानने राठौरोंसे नागौर छीन लिया। गढ़के पास मसजिद बनाई गई थी। जिसके हिजरी सन् १०७६ के लेखमें शाहजहां एवं ताहरखा नाम खुदा है।
(सुन्दर ग्रन्थावली, जीवन चरित्र पृष्ठ ३७) फतहपुर किलेका जीर्णोद्धार व आश्चर्यजनक वावदीका निर्माण दौलतखाने सं. १६६२१६७१ में किया ऐसा उल्लेख फतहपुर परिचयमें किया है। संभवतः इसके सूचित शिलालेख वहाँ हों।
परिशिष्ट नं. २ "मुहणोत नेणसीरी ख्यात" मूलसे क्यामखानीकी उत्पत्ति यहां उद्धृतकी जाती है - “अथ क्यामखान्यारी उत्पति अर फतैपुर जूझएं वसायौ ।
दरेरा वासी चहुचाण, तिकां ऊपर हंसाररो फोजदार सैद नासर दोड़ियो। तद दरेरो मारियो अर लोक सरव भागो । पछै चालक २ फोजदाररै नजर गुदराया ।ताहरां फोजदार दीठा। हकम कियौ "जु हाथीर महावतनूं सांपो पर दूध पावो - मोटा करो।" ताहरा फौजदार सैद नासर दोन यालकांनं आपरी बीबीनूं सांपिया अर कहो-"जु हम दो लाये हैं सो इनको तुम पालो" ताहरां दोन पालकांन बीषी पालिया। लदका वरस १० तथा १२ रा हुवा ताहरां