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क्यामखां रासा - परिशिष्ट धनंतर मुख वैद्य बहु, सिद्ध चिकित्साकार । तन सुद्धि मुणि योग पथ, लहइ संसारह पार ॥२॥ ताथई चिकिछक योगविद्, पछई चिकित्सा सत्थ । मुक्ति होई परमवि निपुण, रहां चाहइ तउ अत्थ ॥६॥ धर्म अर्थ अरु काम कउ, साधन एह शरीर । तसु निरोगता कारएई, उद्यम करइ सुधीर ॥७॥ धुरि निदान विग्यान तसु, ओषधके गुण दोष । तास सुद्ध वैद्यक हुवइ, जानु करइ जु अमोस ॥१२॥ देश काल वय वन्हि सम, श्रोषध प्रकृति विचार ।
देह सत्व बल व्याधि फुनि, धइ अोषध गुनकारि ॥१३॥ इति श्री दउलति विनोदसार संग्रहे श्री दउलतिखांन नृपति वर विनिर्मित वैद्यगुणाधिकारः । अधिकारोंके अंतमें
ज्ञान परम इहु जोगी जानइ, कइ किछु परम वैध बखानइ । ग्रन्थ विसेषि जिहां कछु पाया, भूपति दउलतिखांन दिखाया ॥१॥
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जामाता मधुरइ सीतलेहि, तिउं पित्तह सेवउ मन अनेहि । इहुं काल ज्ञान जानहुं सुजान, भास्य नृप श्री दउलतिखान ॥३॥
षोडश ज्वर लक्षण सहित, श्रोषध कवाथ बखांन ।
कहा वागड देशाधिपति नृप श्री दउलतिखांन ॥१७॥ इति श्री वागढ देशाधिपति श्री पालिफखांन नंदन श्री दउलतिखान विरचित श्री दउलति विनोद सार संग्रह षोडश ज्वराधिकारः।
प्राप्त ४५ अधिकारों के नाम
वैद्यगुणाधिकार, परमज्ञानाधिकार, कालज्ञान, मूत्र परीक्षा, नाड़ी परीक्षा, ज्वर चिकित्सा, अतिसार, संग्रहणी, हर्ष, दुनामोनिरूपण, मन्दाग्नि, विसूति, अजीर्ण, कृमिनिदान, पांडु, राजयक्ष्मा, काश, छींकनिदान, स्वरभेद, श्रारोचक, छर्दि, तृष्णा, दाह, उन्माद, वातनिदान, आमवात, शूलनिदान, गुल्म, हृद्रोग, मूत्रकृच्छ, मूत्रघात, अश्मीरी, प्रमेह भेद, उदरामय प्लीहा, शोथ, अंड वृद्धि, गंडमाल, श्लीपद जणानां, विस्फोट, भगंदर, उपदंश, सूक कर, शीत पित्त, आम्लपित्त, विसर्पि तथा भावाँ लुता । (इसके बादका अंश प्राप्त नहीं है)।
जैसा कि अपर लिखा गया है, प्रस्तुत प्रन्यकी केवल एक ही अपूर्ण प्रति प्राप्त हुई है।