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परिशिष्ट नं. १ दीवान दौलतखाँ रचित हिन्दी वैद्यक ग्रन्थ दीवान दौलतखा' द्वारा रचित हिन्दी वैद्यक ग्रन्थका नाम है 'दउलति विनोदसार' । इसकी एक अपूर्ण गुटकाकार प्रति बीकानेरकी अनूप संस्कृत लाइब्रेरीमें विद्यमान है । प्रस्तुत प्रतिमें अन्य कई वैद्यक अन्योंका भी संग्रह है, केवल बीचके पृ० ३६७ से पृ० ३९७ तकमें यह ग्रन्थ लिखा हुआ है। पूर्ण प्रतिकी अनुपलब्धिके कारण इसमें ग्रन्थका कितना अंश कम रह गया है व अन्तमें प्रन्थके रचनाकाल श्रादिका उल्लेख था या नहीं, यह कहा नहीं जा सकता । उपलब्ध पत्रोमें करीय १५०० पद्य हैं, जिनमें हिन्दीके अतिरिक्त संस्कृतके भी सैकड़ो श्लोक हैं । संभवतः ये किसी अन्य ग्रन्थसे उद्धृत किये गये होंगे। आश्चर्य नहीं कि वे ग्रन्थकारके बनाये हुए भी हों, क्योंकि उनमें किसी ग्रन्थसे उद्धृत किये जानेका उल्लेख देखने में नहीं आया।
जैसा कि राजा-महाराजाओंके नामसे रचित बहुतसे अन्योंके सम्बन्धमें देखनेमें आता है, संभव है कि यह ग्रन्थ भी स्वयं दौलतखाँका रचा न हो कर उसके प्राश्रित किसी वैद्यविद्याविशारद कविका रचा हुश्रा हो । पर प्राप्त अंशमें कहीं ऐसा नाम-निर्देश न मिलनेसे दौलतखाँ द्वारा रचित मान लेना ही ठीक जान पड़ता है । ग्रन्थका प्रारंभिक अंश व अधिकारोंके नामादि नीचे दिये जा रहे हैं, जिससे ग्रन्थका महत्व भली भाँति विदित हो जायगा -
दउलतिविनोदसारसंग्रह श्रीमंत सच्चिदानंद, चिद्रूपं परमेश्वरम् । निरंजनं निराकारं, तं किंचित्प्रणमाम्यहम् ॥१॥ दोधकादि सद्वृत्तै पाठः पाठानुगे वरे । शास्त्र विरुच्यते रुच्यं, ह (?) ष्ट्वा शास्त्राण्यनेकशः॥२॥ "दउलतिविनोदसारसंग्रह" नाम प्रकृष्ट परमार्थम् । यत्रा से परोपकृत्यै, सम्मते सुमतं कवीन्द्राणां ॥३॥ श्रीमद्वागड मंडलाखिल सिरः प्रोद्यत्प्रभा मंडनः । श्रीमंतोऽलिफखानभूपतिवरः नन्यासुरानन्ददाः ॥ तत्पट्टोदय स्यनुम दिवाकरैः भास्वित्प्रभा भास्करैः । श्रीमद्दउलति खान नाम वसुधाधीशः सुधीशाश्रितः ॥४॥
१ इनका चित्र फतहपुर प्रन्थमें प्रकाशित है।