________________
क्यामखां रासा]
ह
भर तरुनांपै ही कुबरतें कुवेर लूंट्यौ सोने को सुमेर काहू करि कोप ढाह्यौ है। रोम रोम दीनो दुख दया न करी है चुख
डाइन बलखतौ करेजा हाथ बाह्यौ है ॥१०१५॥ ॥दोहा।। मरन पूतको सुन पिता, कैसे धीर धरंत ।
रोवनहार हि रोईये, यहु दुख आहि अनंत ॥१०१६।। बात सुनी दीवान जू, अति दुख उपज्यो गात । करता करहि सु सीस पर, कछु बर नाहिं बसात ॥१०१७॥ पातसाह यह बात सुनि, काहू अग्या दीन । खां सरदार वुलाइक, बहुत दिलासा कीन ।।१०१८।। फिरी मुहिम बलाखकी, काबुल आई सैन । वहुर पठाई फौज तब, गढ़ खंधारको लैन ॥१०१६॥ जैगढ़को घेरौ कीयौ, पै बर नांहि बसाइ ।
और फौज गढ़की कुमक, दीनी साही पठाइ ॥१०२०।। इत दल साहिजहांनके, उत दल साहि अबास । आपुनमै लागे लरन, पुहची धूरि अकास ॥१०२१॥ तबहि फौज लागी डिगन, तव रुस्तम दीवांन । जै सनमुख लरन, बैरनि पर्यो भगांन ॥१०२२।।
॥सवईया ॥ साहिजहां करि क्रोध खंधारके लीबेको प्रापुनी फौज पठाई । जुद्ध मच्यौ है नच्यो तहां नारद आगै फौज अबासकी आई। दछिनी दछिन वोर भयो है दीवान अनी तव लीनी है बाई।
दौलतखां दलनाइक साहिकी सैन भलै लरिकै बिचराई ॥१०२३।। ॥दोहा॥ भाजी फौज अबासकी, जीते दल पतसाह।
लरे सु मरे परे उहां, भांजि बचे गुमराह ।।१०२४।। जब तुसार मौसिम भये, सके न दल ठहराइ । घेरो तजि खंधारको, काबुल बैठे आइ ॥१०२।