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[ कवि जांने कृत
आगे माधो दल कीयो, लै सैंखावत • सर्व । अनगंन कटक निहार कै, बहुत बढ़यौ मन गर्व ॥ ७७६ ॥ दौलतखां चहुवांन जब, नेरै लाग्यो आइ । तब माधो लर नां सक्यौ, डरकें गयौ पराइ ॥ ७८० ॥ बित बसई सब तजि गयो, जब दल पहुंचे आइ । लूटी नांहि दयाल ह्वै, दी चहुवांन पठाइ ॥ ७८१ ॥ जुद्ध करे ताकी हनै, दूलहु दौलतखांन | भाजेकौ मारे नही, यहै बांनि नरहर पाई अलिफखां, दीनी आप तबहिं चढ़यौ दल साजि कै, दौलतखांमु नरहर नाहर दल सजे, लरि नां सके नाहरखांकौ दी सुता, गहे चरन चहुवांन ॥ ७८४ ॥ अलिफ खांन दीवांनकी, बहुत बढ़ी परतीति । दयो उदैपुर बारुवो, पातसाह करि पीति ॥ ७८५ ॥ गिरधर अलखांसु लिख्यो, उनको दखल न देह । जो वै आवै लरनको, तौ सनमुख ह्वै लेह ||७८६ ॥ दौलतखां से लिख्यो, अलखां जाहि पराइ । आपुनते निकसै नही, तौ हौ काढ़ी प्राइ ॥७८७॥ अलखां तब से लिख्यौ, मेरे पाइ पतार |
सौ जोधा कौन है, सकै जु मोहि निकार ॥ ७८८ ॥ दौलतखां यह बात सुनि, कर दल चढ़चौ रिसाइ । सनमुख ह्वै नाहिन सक्यौ, ग्रलखां गयो पराइ ॥७८॥ अलखां भाजत फिरत है, बचन गये सब भूल । पवन लगे ज्यों जान कहि, उड़त अर्कको तूल ॥७६०
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रहि न सक्यो खीरोरमें, दौलतखां दुदभ' बजत,
चहुवांन ॥७८२ ॥
दिलेस ।
नरेस || ७८३ || निदान |
दुर्यो खोह में जाइ । वरे उदैपर आइ ॥७६१