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क्यामखां रासा]
परी खडेलै खल भली, रैवासमै रोर। दौलत खां चहुवांन की, हाक धाक सब ठौर ॥७६२।।
तीजी वार मेवातकी फौजदारी पाई ॥ दोहा ॥ दछिनते दीवान जू, टेर लये पतिसाहु ।
कह्यौ अवहि मेवातकू, वहुरौ साधन जाहु ।।७६३।। फौजदार मेवात के, तीजे भये दीवांन । भले पजाये भोमिया, संग ही दौलतखांन ।।७६४।। वाकी खेरी चोरटी, अति गाढ़ा मैवास । तिनको दौलतखानने, करचो कोपकै नास १७६५।। लरे बहुत ही भोमिया, मरे होइ घन घाइ। वध कर पानी तिन सुता, डारे धूर मिलाइ ॥७६६।। फिर पठये दीवांन जू, दच्छिन को छत्रपत्ति । दछिन दछिना मांगि है, भये हीन वल अत्ति ।।७६७।।
कांगरैकौं विदा कीने . . ॥दोहा॥ सार पर्यो जब कांगरै, फिर टेरे दीवांन ।
राजा बिक्रमजीतकै , संग 'दये दै मांन ।।७९८॥ सूरज मल हौ नूरपुर, पाये दल पतिसाह । अनी जोरि ताकी बनी, बनी न मनकी चाह ।।७६६।। मूरजमल लरि नां सक्यौ, भाजि बचायौ प्रांन । आइ बिराजे नूरपुर, राजा पुनि दीवांन ।।८००। सूरज मल दल साहकै, घरते दयौ भजाइ । खोद मुवी बिल चौखरां, लीनी नाग छिड़ाइ ।।८०१।।
॥ सवैया । भाजि गयौ तजि मदिर को गिरकंदर अंदर आपुदुरायो । छाड़ि के बाग बगीचा वनै बहु थोहरकै बिरवै मनु लायौ ।।