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[कवि जान कृत नंद बहादुर खांनको, समसखांनु सिरमौर । पिता मुवी तव झंझनू , बैठ्यौ उनकी ठौर ।।६७७।। भइया और बदै नही, निस बासुर दुख देत । अलिफ खांन दरगह गये, संग आपुनै लेत,॥६७८।। समसखांनकी बांहि गहि, अलिफखांन दीवांन । लै मिलयौ पतिसाहको, द्यायो मनसब मान ।।६७९।। अबलौं यों आई चली, असौ करम इलाहि । वहै झूझनू है बड़ौ, करै फतिहपुर जाहि ॥६८०॥ अकबर झुक्यौ पहारसौं, बहुत भयो चितभंग । जगतसिंघ पठयो उतहि, अलिफखानु दै संग ॥६८१॥ पैठे जाइ पहारमैं, जगतसिंघकै साथ । द्रुवननिकौं दोवान जू, नीके लाये हाथ ॥६८२॥ मारी जाइ धमेहरी, और तिहारा गांव । बासो बिचरयो खेत चढ़ि, भलौ भयो जगु नांव ।।६८३।। राजा आप तिलोकचंद, डरत मिल्यौ है आइ । संग लाइ के ले गये, पातसाहकै पाइ ॥६८४॥ रानै ऊपर जब चढ़े, रिस धर साह सलेम । अलिफखानुं पतिसाहि पै, मांगि लये करि पेम ॥६८५॥ बाटे थाने जाइ उत, साहि सलेम विचार । थानौं दीनो सादरी, अलिफखांन सरदार ।।६८६।।
दीवाननै रानैंको थानौ मारयो ॥दोहा॥ रानैको थानौ तक्यौ, अलिफखानुं सिरमौर ।
चक्रवती चहुवाननै, उत को कीनी दौर ॥६८७।। परी लराई अति भली, चली बात संसार । रानैक दल अलिफखां, मारे अमित अपार ॥६८८॥ तबहि चिनायो चौंतरा, अरि सिर काटि अपार । लूंट बहुत ही कर चढ़ी, सुजस भयो संसार ॥६८६।।