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. [कवि जान कृत मलिक ताजको लूंटि के, ताजखानुं चहुवांन ।
थांनी रैबारी हन्यौ, जानत सकल जहांन ।।६५७।। ॥सवैया।। अलवर ते दलबल कर धायो तरवार ताजखानु चहुंवांन ।
मारी सारां और खरकरी-लूटि लयो गढ येदलखांनु । मलिक ताजकौं भंजि गंजिकै राइमलहिं हरखे दीवांनु ।
बिचरायौ रैवारी थांनी प्रगट्यौ है जसु सकल जहांनु।।६५८।। ॥दोहा॥ ताजखांन को बड़ौ सुत, महमदखांनु चहुवान।
ग्यानवंत दाता सुभट, सम को नांही आन ॥६५६।। अरथ दुर्यो ततछिन लहत, चातुर ग्यान अपार । इंछया पूरत सकल की, महमदखां दातार ॥६६०॥
श्री दीवांन महमदखांके पुत्र
१ अलिफखां, २ इबराहिमखां, ३ सरमसतखां । । ॥दोहा॥ अलिफखांनु कुल तिलक है, पुनि इबराहिमखांन । तीजी खां सरमसत है, जानि लेहु कहि जान ॥६६१।।
महमदखांकी फतिह ॥दोहा॥ महमदखां साधे भलै, क्यारौ पुनि बैराठ ।
करवर कैंबर जांन कहि, जेर करी है राठ ॥६६२॥ कुभकरन मांडन नंदन, कूपावत राठौर ।
दीनौ खेत खिसाइ कै, महमदखां सिरमौर ॥६६३॥ ॥ सवैया॥ ताजखांनु सुत तिलक सुभट मैं महमदखांनु मरद मुछार ।
क्यारौ अरु बैराठ तेग बर साधे अरि लागे पग हार। कुंभकरन मांडनको नंदन खैत खिसाय दयो जूझार ।
दीनदार सरदार छबीलो भोज करन सम बुद्धि दातार ।।६६४॥ ॥दोहा॥ भर तरुनापै मरि गये, महमद खां चहुवांन ।
पूत पितापहले मरै, यातें कठिन न आँन ॥६६५।।