________________
क्यामखां रासा]
श्री दीवांन फदनखांके पुत्र १ ताजखाँ, २ पेरोजखाँ, ३ दरियाखां। ॥दोहा॥ ताजखांनु पेरोजखां, तीजौ दरियाखाँन । फदनखांनुके नंद है, पर्गट सकल जहांन ॥६२४॥
अथ फदनखांकौ बखांन । ॥दोहा॥ जबहिं भये बस कालके, नाहरखां सिरमौर ।
तबहि फदन खां जांन कहि, बैठे उनकी ठौर ॥६२५।। फदन खांन दीवानकै, ग्यान दयौ करतार । सम लुकमॉन हकीमकी, देत सकल संसार ।।६२६।। दिल्ली मांह सलेम साह, भयो जवहि पतिसाहि। कीनी बहुत पठांनन, फदन खांनकी चाहि ॥६२७।। महबतखां सुत खिदरखां, फदन खांनके पास । ठाढ़ौ हौ पतिसाहन, असे कर्यो प्रकास ।।६२८।। फदन खांन तूं आव इत, वहन तिहारी ठौर । कहा भयौ भइया भये, तूं सबमै सिरमौर ॥६२६।। वहुर हुमायों आइ के, भयो दिल्ली सुलतांन । फदन खांनुको टेरकै, दीनौ प्रादुर मान ॥६३०।। जव अकवर दिल्ली भयो, साहिनकी मनसाह । फदन खांन दीवांनसौ, कीनौ हेत निबाह ।।६३१।। अमित प्यार निसदिन करत, अकवर साह सुजांन । फदन खांनु चहुवांनको, जगुमै बाढ्यौ मान ॥६३२।। करी बीनती बीरबल, देखि छत्रपति प्यार । इत्ती मया तुम करत हौ, या पर कौन विचार ॥६३३।। पातसाह तब यों कह्यौ, सुनि वर वीर बिचार । और बड़े मेरे किये, ये कीने करतार ।।६३४॥ साढ़े तीन कुली कहै, रजपूतनकी जात । तोहि कहौ समुझाइ के, सुनि लै तिनकी वात ।।६३।।