________________
५२
[ कवि जांन कृत
मारग
नाहरखाँ निहचल रह्यौ, धरि अपनै मनि धीर । क्यों न होइ जिह बंसमै, पिरथी रा . हमीर ॥ ६१२॥ तकै पंवारको, मकरानैकै ताल । ताही मै बहु दल लये, आयो डिठ जगमाल ॥ ६१३॥ फौजदार अजमेरको हो जगमाल पंवार । लये, हय नर अमित अपार ॥ ६१४ ||
1
अनी बनी सैन जूभार । वरिपा बान अपार ।। ६१५ ।।
रानैकै दल बल दहूं वोर बांटी छूटत है गोली घनी, ॥ गैनन्दछन् || उमडे कटक दहुं वोरके, घमंडे मनौ घनस्याम | हथियार चमकत देखीये, ज्यों बीजुरी अभिराम ॥६१६ ॥ इंद जैसे गज्जिहै, त्यों बज्जिहै नीसांन । बुंद नाई बरसिहै, बरिखा लग्गी बहु बांन ॥ ६१७॥ छेद करिहै अंगमं, चलि है छछोहे बांन । कटिहै कटि मुंड कर जित लागि है किरपांन ॥ ६१८ || चहुवांन पंवार मिलिकै, कर्यो है घमसांन । सुभट सुभटनि लरि मरे हैं, पर्यो कीचक धान ।। ६१६ ॥ खेल जुद्धकै खेले भले, जोव रची धमाल | लरत नांहिन मिटे रंचक, कटे चले नारे खार रत भयो, लाल सगरो ताल । अंत जीत्यो खांन नाहर, भाजियो जगमाल ||६२१॥ ना दीन । आगे ही धस लीन || ६२२॥
मरद मुंछाल ||६२० ॥
,
॥ दोहा ॥ नाहरखांने खेत चढ़ि पूठ कहूं नंदने, आगे
दौलतखांके
॥ सवैया ॥ दौलतखां नंदन जग बंदन नाहरखां नाहर है मानौ ।
चढ़े तुरंग कुरंग होहिं अरि गउवनकी ज्यों परत भगाँनी । मकरानै जगमाल भजायौ हाक धाक भै मानत रानौ । जाकी भुजा प्यारकर पकरी महबतखां ज्यों पार लगानौ ॥ ६२३॥