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क्यामखां रासा]
हो पाछै आवत नहीं, आगे उतर्यो जाइ । जो मिलबेकी हौस है, इतहि मिलहु तुम आइ ।।५६६।। नागौरी खां सुनत ही, चढ्यौ बजे नीसांन । आयो नाहरखांनपै, मिलि सुख उपज्यो प्रान ॥६००। तब रानों यह बात सुनि, निसही गयो पराइ। हाक धाक सुनि सुभटकी, काइर क्यों ठहराइ ।।६०१।। खाँ उठि दौर्यो खोजहीं, जित जित निकस्यो रांन । आगै पाछै जात है, जैसे रैन बिहान ॥६०२॥ राना बर्यो पहाड़ में, फिरी सैन नागौर । गांव लये सब लूटि के, बंची न कोऊ ठौर ॥६०३।। आवत है ये उमंगसौं, लूट चले चित चाइ। तब जगमाल पंवारनै, मांनस दयो पठाइ ॥६०४॥ करत जाहु रजपूत मुहि, जो तुम मैं रज होइ । पहुँचौ जौ ठाढ़े रहौ, पहर येक के दोइ ॥६०।। रानैनै अजमेर मुहि, सौपी ही कर प्यार । देस लूंटि के तुम चले, करत जाहु इक रार ॥६०६।। किनही मुख लायो नही, तव उठि चल्यो वसीठ । काहूको नाही वदै, गार देत मुख ढीठ ॥६०७।। नाहरखां यहु वात सुनि, नाहिन सक्यो सहार । मानस तबही पंवार को, अपतन लयो हंकार ॥६०८।। हरयें हरये भाइयहु, भाषहु जाइ पँवार । हो नाहरखां वागरी, जाउं न विना जुहार ।।६०६॥ नाहरखां ठाढे रहे, और गये सब छाडि । नां राखी पहिचान कछु, ना रजवटकी आडि ।।६१०॥ नागोरी नगरी तकी, वीके बीकानेर । सुजै ताक्यौ अमरसर, प्रांवर प्रांवेर ॥६११।।