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कर सकता है, जिसने उन्हें साहित्य - जगतके सहयोगियोंके साथ सम्बन्धके अनेक सूत्र जोड़ते हुए देखा है । वे साफ़-सुथरे विचार और तदनुरूप सुघटित सुशिल्पयुक्त कर्म में विश्वास करते हैं । स्वयं अपने जीवन में उन्होंने इसका प्रतिपालन किया है, और दूसरोंमें भी वे इस गुणको देखना चाहते हैं । अपने जीवनमें उन्होंने जो ज्ञानकी गंभीर साधना की है वह स्तुत्य है । पाणिनीय व्याकरण, सिद्धहेम - शब्दानुशासन जैसे महान् ग्रन्थ, भारतीय जैन और बौद्ध दर्शन, उनमें भी विशेषतः न्याय और प्रामाण्यवाद के अनेक विशिष्ट ग्रन्थ उनकी स्मृतिमें विद्यमान हैं । उनके तर्क और हेतुओंमें गहरे पैठकर उन्होंने विशिष्ट विचार किया है । उनके इस महत्कर्मका अनुभव करके स्तव्ध हो जाना पड़ता है । उनकी प्रचण्ड दहकती हुई स्मृति ईश्वरका वरदान है, जिसे उन्होंने अपनी एकाग्र निष्ठासे और भी कुशलिनी बनाया है ।
किन्तु शुद्ध शास्त्रीय पाण्डित्य तो अन्यत्र भी मिल सकता है । पण्डितजीकी जो विशेषता है, वह उनका दृष्टिकोण है । उन्होंने प्रत्येक ज्ञानको जीवनकी दृष्टिसे समझने और अर्थानेका अभ्यास किया है । वह पाण्डिय क्या जो जीवनसे असंस्पृष्ट रहे ? वे गान्धीजीके निकट संपर्क में आये और लगभग ग्यारह वर्षों तक अहमदावाद - गुजरात विद्यापीठमें कार्य करते रहे । अवश्य ही दोनों महान् व्यक्तिओंने एक-दूसरेको पहचाना, और अपने कार्योंको जीवनरस से समन्वित बनाकर प्रस्तुत करनेकी युक्तिको ही अपनाया ।
कई अवसरों पर श्री० पण्डितजीको निकट से देखनेका अवसर मुझे मिला है, और प्रतिवार उनके प्रति मैंने अपने आकर्षणको बढ़ा हुआ पाया है । जैन साहित्यके सर्वांङ्गपूर्ण वृहत् इतिहासकी एक योजना मेरी प्रेरणा से पार्श्वनाथ विद्याश्रमने स्वीकृत की । आरम्भसे ही पण्डितजीने उसमें सक्रिय रुचि ली । न केवल उन्होंने उसका समर्थन किया, वरन् उसके आरम्भिक संगठन में वहुमूल्य परामर्श और सहयोग दिया | योजनाके सम्बन्ध में जो एक वाक्य उन्होंने कहा वह मुझे कभी नहीं भूलता - " यह काम करना है । " आज भी योजनाकी प्रवृत्तियों में लगे हुए सब सहयोगी इस प्रेरणाघन सूत्रसे कठिनाई में मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं । मैं आनन्दका वह क्षण भी कभी नहीं भूल सकता जब राजकोटकी मेघाणी समितिके निमन्त्रण पर
मेघाणी व्याख्यानमाला ' के प्रथम व्याख्यान देने में और कुछ ही स्टेशन पूर्व ब्राह्ममुहूर्तमें लगभग चार बजे मिली कि पण्डित सुखलालजी उन व्याख्यानोंके अवसर पर
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आमन्त्रित होकर
राजकोट जा रहा था
रेलमें ही सूचना उपस्थित रहने के