SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आध्यात्मिक पत्र [90] कालिम्पोग (दार्जिलिंग) २४-८-१९५३ "ऐसे मुनिवर देखे वनमे, जाके राग-द्वेष नही मनमे " आत्मार्थी मै कलकत्तासे एक माह लगभग हुआ बाहर गया था, परन्तु खेद है सोनगढ़ आनेका सौभाग्य नही हो सका । सेठ बच्छराजजीके साथ 'गया' जाना हुआ था ।... सेठ वच्छराजजी व मोहनलालभाईका सोनगढ़ जल्द जानेका विचार है, परन्तु खेद है मै फिर भी अभी नही आ सकता; दीवालीके पास तक आना हो सकेगा ऐसी आशा है । परसो यहाँसे कलकत्ता जाऊँगा । ९ वहाँ परम पूज्य श्री सद्गुरुदेव परम सुख-शान्तिमे विराजते होगे; हृदयमे उनको नमन करता हूँ । "अपनी सुधि भूल आप, आप दुख उपायो । ज्यो शुक नभ चाल विसरि, नलिनी लटकायो " | " मन वच तन करि शुद्ध भजो 'जिन' दाव भला पाया । अवमर मिले नही फिर ऐसा, यो सत्गुरु गाया " || "धन धन साधर्मीजन मिलनकी घरी । वरसत भ्रमताप हरन, ज्ञान घन झरी" ॥ वहॉ सर्व मुमुक्षु मण्डली श्री गुरुदेवकी धर्मामृत-वाणी- पानमे मग्न है; विचार आते ही, दूर रहने रूप दुर्भाग्यका खेद होता है । "चिद्राय गुन सुनो प्रशस्त गुरु गिरा । समस्त तज विभाव, हो स्वकीयमे थिरा" | "कुगुरु, कुदेव, कुश्रुत सेये मै, तुम 'मत' हृदय धस्यो ना । परम विराग ज्ञानमय तुम, जाने विन काज सस्यो ना” | "हे जिन | मेरी ऐसी बुधि कीजे । राग-द्वेषदावानल ते वचि, समता रसमे भीजे" 11 धर्म नही निहालचन्द्र
SR No.010641
Book TitleDravyadrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVitrag Sat Sahitya Prasarak Trust
PublisherVitrag Sat Sahitya Trust Bhavnagar
Publication Year
Total Pages261
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy