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________________ ८५ अपने पिता प० वशीधरजी न्यायालकारको प्रेरणाको पाकर भी उसे भेज या भिजवा नही सके । इसीसे इस अनुवादका कोई परिचय नही दिया जा सका । गुजराती अनुवादके 'निवेदन' आदि परसे इतना जरूर मालूम है कि गुजराती अनुवाद के साथ मूलपाठ वही रक्खा गया है जो श्रीधन्यकुमारजीके द्वारा सम्पादित होकर उक्त अध्यात्मग्रन्थग्रहमे प्रकाशित हुआ है और ग्रन्थका शीर्षक भी उसीके अनुसार "श्रीमन्नागसेनाचार्य प्रणीततत्त्वानुशासन' रक्खा है। इससे मालूम होता है कि मूलपाठकी कुछ अशुद्धियाँ इस द्वितीय अनुवादके समय भी, जो २५ वर्ष बाद हुआ है, स्थिर रही हैं और उनके कारण अनुवादमें कुछ अन्यथापन भी आया है । प्रस्तावना तीसरा गुजराती अनुवाद मुनि श्रीतत्त्वानन्द विजय के द्वारा प्रस्तुत किया गया है, जिन्हें उक्त अध्यात्मकग्रन्थस ग्रहको मुद्रित प्रति तो प्राप्त नहीं होसकी, उसपर से उतारी हुई एक नकल प्राप्त हुई थी, जो उन्हे अनुवाद करते समय उपयोगी मालूम पडी है । इस नकलपरसे तत्त्वानुशासनको पहली वार अवलोकन करके उनके हृदयमे जो भाव उत्पन्न हुमा उसे व्यक्त करते हुए वे अपने 'वे वोल' मे लिखते हैं : 'तत्त्वानुशासन ग्रन्थको प्रथम वार जव अवलोकन किया तब उसका मनपर सुन्दर प्रभाव पडा और उस समय ऐसा लगा कि ध्यानमार्गके लिये यह अन्य अत्यन्त उपयोगी होनेसे प्रत्येक मुमुक्षुके अध्ययनका विषय बनना चाहिए | इस विचारने समग्र ग्रन्थके गुजराती अनुवादके लिए प्रेरणा प्रदान की । ग्रन्थकी रचना ग्रन्थकर्ताकी अगाधविद्वत्ताको स्वयं बतला रही है ।' यह अनुवाद गुजराती लिपिमे ७० पृष्ठोपर मुद्रित है, जिसमे मूलग्रन्थको देवनागरी लिपिमे दिया है, और इसे श्री नवीनचन्द अम्बलाल शाह एम० ए० मत्री 'जैनसाहित्य विकास मडल' विले पारले, बम्बई - ५७ ने, अपने 'निवेदन के साथ, सितम्बर १९६१ मे प्रकाशित किया है । इसमें मूलग्रन्थका जो पाठ दिया है उसमें कही कही कोष्ठक के भीतर ..
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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