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________________ तत्वानुशासन तब तू समस्त वन्व-हेतुओके विनाशसे मुक्त हुआ फिर ससार-परिभ्रमण नही करेगा' (२०-२२) । बन्धके हेतुओका विनाश तभी बनता है जब मोक्षके हेतुओको अपनाया जाता है, क्योकि दोनो शीत तथा उष्ण स्पर्शकी तरह एक दूसरेके विरुद्ध हैं-एकसे बचनेके लिए दूसरेका आश्रय लिया जाता है (२३)। ___ वह मोक्षहेतु अथवा मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चरित्ररूप त्रितयात्मक है, जो निर्जरा और सवररूप परिणमता हुआ मोक्षफलको फलता है, ऐसा जिनेन्द्रभगवानने कहा है (२४), इसकी सूचना करते हुए सम्यग्दर्शनादिका अलग-अलग लक्षणादि दिया है और फिर मोक्षमार्गको निश्चय तथा व्यवहार दो नयोकी दृष्टि से दो प्रकारका बतलाते हुए निश्चय मोक्षमार्गको साध्य और व्यवहार मोक्षमार्गको उसका साधन सूचित किया है (२८)। साथ ही निश्चय और व्यवहार दोनो नयोका सुन्दर एव व्यापक स्वरूप देकर (२६) उनके अनुरूप दोनो प्रकारके मोक्षमार्गों का अलग-अलग निर्देश किया है (३०-३२) और फिर दोनो प्रकारके मोक्षमार्गोको ध्यान द्वारा साध्य बतलाते हुए ध्यानके अभ्यासकी सुधीजनोको खास तौरसे प्रेरणा की गई है (३३)। इसके वादसे ही गन्थमे ध्यानका मुख्य विषय प्रारंभ रोता है, जिसके आर्त, रौद्र, धर्म्य और शुक्ल ऐसे चार भेद बतलाकर प्रथम दोको दुर्ध्यान एव मुमुक्षओद्वारा त्याज्य और अन्तके दो ध्यानोको सद्ध्यान एव बन्धनोसे मुक्ति प्राप्त करनेकी इच्छा रखनेवालोके लिये उपादेय (ग्राह्य) सूचित किया है (३४) । अतीतकालमे जिन महानुभावोंने शुक्लध्यानको धारण किया है उनके निर्देश-द्वारा वजूसहनन, पूर्वश्रु तज्ञता और उपशम तथा क्षपकोणि चढनेकी क्षमता जैसी उस समगीका ससूचन किया गया है जो शुक्लध्यानके लिये परमावश्यक है (३५), और फिर लिखा है कि 'इस क्षेत्र-कालमे उस प्रकारकी वजूसहननादि-सामग्रीका अभाव होनेसे जो लोग शुक्लध्यानको ध्यानेमे असमर्थ हैं उन वर्तमानयुग
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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