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________________ तत्वानुशासन संसारके सभी प्राणी नाना प्रकारके दु खोंसे सन्तप्त हैं । दु खोंसे छूटना चाहते हैं, परन्तु छुट नहीं पाते । क्योकि उन्हें दुखके कारणो तथा सुखकी प्राप्तिके साधनोका ठीक परिज्ञान नहीं है, जिन्हें कुछ परिज्ञान है उनका उस पर श्रद्धान नहीं और जिन्हे श्रद्धान भी है उनका तदनुकूल आचरण नही-वे दु खके कारणोको दूर करने तथा सुखके कारणोको मिलानेका कोई प्रयत्न नहीं करते। अत यह ग्रन्थ प्राय. उन भम्य प्राणियोके दु खोको दूर कर उन्हे सच्चासुख प्राप्त करानेके उद्देश्यसे लिखा गया है जो उपदेश-ग्रहणकी पात्रता और अपने स्वाभाविक गुणोंको विकसित करनेकी योग्यता (शक्ति) को अपनेमे लिये हुए होते हैं (३)। ग्रन्थमे सबसे पहले-मगलाचरण, अन्यनिर्माण-प्रतिज्ञा, वास्तवसर्वज्ञके अस्तित्व और लक्षण-निर्देशके भी अनन्तर–सर्वज्ञके कथनानुसार दुःखके कारण बन्ध और उसके हेतुओको, हेयतत्त्व तथा सुखके कारण मोक्ष (बन्धन-मुक्ति) और उसके हेतुभोको उपादेय तत्त्व बतला. कर बन्धके स्वरूपका निर्देश किया गया है और उसे जीव तथा पोद्गलिक कर्मके प्रदेशोका परस्पर सश्लेप-सम्मिलन एवं एक नावगाहरूप अवस्थान-सूचित किया हैं। साथ ही यह भी सूचना की है कि वह वन्ध चार प्रकारका-प्रकृति-स्पिति-अनुभाग-प्रदेश-बन्धके भेदसे-प्रसिद्ध है । (४-६) वन्धतत्त्वका जैनवाङ्मयमे एक बहुत बडा विभाग है और उस पर पट्खण्डागम, कपायप्राभृत तथा गोम्मटसारादि अनेक कर्मग्रन्यों और लाखो श्लोक-परिमाण धवला-जयधवलादि टीकाओकी रचना हुई है, विशेष जानकारीके लिए अपनी रुचि तथा आवश्यकताके अनुसार उन्हें देखलेनेकी प्रेरणा भी इस सूचनामे शामिल है। बन्धका कार्य ससारको-एक भवसे दूसरा भव धारणरूप संसरण-परिभ्रमणको-बतलाया है और उसे ही सर्वदु खोका प्रदाता सूचित किया है। साथ ही द्रव्य-क्षेत्र-परिवर्तनादिके रूपमे उसके अनेक भेदोकी सूचना भी की गई है (७), जिनका विशेष वर्णन भी उक्त गन्यो
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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