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________________ प्रस्तावना निर्णयकी दिशामे यह जो अनुसधान-कार्य किया गया है उससे बहुतोका संमावान होगा और उनकी अनेक जिज्ञासाएं शान्त तथा भूल-भ्रान्तियाँ दूर हो सकेंगी। साथ ही नये अनुसधानकार्यको प्रोत्साहन मिलेगा और वह विशेष प्रगति कर सकेगा। ऐसा होनेपर ही मैं अपने इस परिश्रमको सफल समझूगा। ८. ग्रन्थका संक्षिप्त विषय-परिचय यह मध्यात्म-विषयका एक बड़ा ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है-भापा और विषय-प्रतिपादन दोनो दृष्टियोसे महत्वपूर्ण है। ग्रन्थको भाषा जहाँ सरल, प्राजल तथा सहज-बोधगम्य है वहां विषय-प्रतिपादन इतनी अधिक कुशलताको लिये हुए हैं कि पढते समय चित्त जरा भी नही ऊवता-रुचि उत्तरोत्तर बढती ही जाती है और अध्यात्म-जैसा कठिन, दुर्वोध एव नीरस विपय भी सरल सुबोध तथा सरस जान पडता है। ऐसा मालूम होता हैं कि शब्द ही नही बोल रहे, शब्दोके भीतर ग्रन्यकारका हृदय (आत्मा) बोल रहा है और वह प्रतिपाद्य-विषयमें उनकी स्वत की अनुभूतिको सूचित करता है । स्वानुभूतिसे अनुप्राणित हुई उनकी काव्यशक्ति चमक उठी है और युक्तिपुरस्सर-प्रतिपादन शैलीको चार चांद लग गए हैं। इसीसे यह अन्य अपने विषयकी एक बड़ी ही सुन्दर-सुव्यवस्थित कृति बन गया है, इस कहनेमे तनिक भी अत्युक्ति नहीं हैं । जबसे मुझे इस ग्रन्थका परिचय प्राप्त हुमा तभीसे मेरी रुचि इसके प्रति उत्तरोत्तर बढती गई और उसीने मुझे इसका प्रस्तुत भाष्य लिखने के लिए प्रेरित किया है। इस ग्रन्थसे मुझे जो विशेष ज्ञानलाभ तथा आनन्द प्राप्त हुआ वह दूसरोको भी प्राप्त होवे, इसी एकमात्र लोकसेवाकी दृष्टि एव श्रुतसेवाकी भावनासे भाष्यका निर्माण हुआ है । ग्रन्थसे होनेवाले उपकारोंके लिए मैं आचार्यमहोदयका बहुत ऋणी हूँ, आभारी हूँ। और इसके लिए सबसे पहले उन्हे अपनी हार्दिक श्रद्धाजलि अर्पण करता हुमा ग्रन्थका संक्षिप्त विषय-परिचय पाठकोके सामने उपस्थित करता हूँ।
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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