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प्रस्तावना
गणको सूचना दूसरी लघु गुर्वावलीमे स्पष्टतया की गई है । पहली गुर्वावलीमे जहां रामसेनको अनेक महत्त्व के विशेषणोके साथ स्मरण किया गया है वहां लघु गुर्वावलीमे भी उन्हे 'विबोधपतिराट्' जैसा महत्वका विशेषण दिया गया है, जिसका अर्थ होता है 'विशेषज्ञानके धनी योगीश्वर' ।
काष्ठासपी आचार्यादिकी कृतिरूप अनेक ग्रन्थोकी प्रशस्तियोमे माथुरसंघके प्रवेशके पूर्व जहां रामसेनका स्मरण किया गया है वहां उन्हें नन्दीतटान्तर्गत विद्यागणका प्राचार्य सूचित किया है और जहां माथुर गच्छके साथ रामसेनका स्मरण किया गया है वहां उन्हे पुष्करगणका आचार्य सूचित किया गया है । इससे मालूम होता है कि विद्यागणका सम्बन्ध नन्दीतटगच्छके साथ तथा पुष्करगणका माथुरगच्छके साथ रहा है और इसलिये इन दोनो गणों के आचार्य रामसेन एक दूसरेसे भिन्न हैं, जिनमें विद्यागणके रामसेन पूर्ववर्ती और पुष्करगणके रामसेन उत्तरवर्ती हैं। पुष्करगणके रामसेनको ही माथुर गच्छका सस्थापक समझना चाहिये । दोनोंके अन्वय (वश) अलग अलग चले हैं।
श्रीचन्द्रकीर्तिने, पार्श्वपुराणको प्रशस्तिमें, रामसेनको विद्यागणका अधीश्वरसूरि, विद्यऽनवद्य, स्याद्वादविद्याका निवास, विशदवृत्त और कीर्तिमान प्रकट किया है । भ० श्रीभूषणने, पाण्डवपुराणमे, उक्त रामसेनको 'प्रतिबोधनपडित, दिगम्बर, शुद्धचेतस्क, निमित्तज्ञानभास्कर' लिखा है तथा विद्यागणमे उन्हें 'पूरया., पुरा, और 'मान्याः' जैसे विशेषणोंके साथ उल्लेखित किया है, जिससे वे सभवत. विद्यागण के संस्थापक जान पडते है। वृषभदेवपुराणमे उन्हें 'नरदेव-पूज्य' लिखा है, और शान्तिनाथपुराणमे 'नम्य(नमनेयोग्य), ज्ञानकोविद, पचमकालमे अतुल्यज्ञानी तथा दुर्मतध्वान्तनाशक' बतलाया है। ब्रह्मकृष्णदास तथा केशवसेनादि दूसरे विद्वानोंने भी उन्हें 'मुनिपनुत (मुनीश्वरो-द्वारा नमस्कृत) भदन्त-भगवान,
१ देखो, वीरसेवामन्दिरमे प्रकाशित जैनग्रन्थप्रशस्तिसग्रह, प्रथममाग ।