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तत्वानुशासन
मडन रामसेनको बतलाया गया है । साथ ही, रामसेनके विषयमे यह भी सूचित किया है कि वे दक्ष थे, ज्ञान-विज्ञानसे भूपित थे, अतिप्रसिद्ध थे, दूसरोके प्रतिबोधनमे पंडित थे और उन्होंने नारसिंह नामकी एक सज्जातिकी स्थापना की थी।' काष्ठासघकी दूसरी लघुगुर्वावली 'मे भी, जिसके गुरुवोका प्रारम्भ प्रहढल्लभसूरिसे न करके 'पचगुरुसे' किया गया है तथा वीचमे सिद्धान्तसेनको नाम भी छोड दिया है, 'श्री मनोयगुरु' पाठ ही दिया है। दोनो गर्वावलियोका यह पाठ साफ अशुद्ध जान परता है। जहां तक मैंने इस पाठके शुद्धरूपका विचार किया है वह मुझे 'श्रीमन्नागगुरुः' मालूम होता है-दूसरा कोई पाठ यहाँ उपयुक्त नहीं बैठता । लेखकोंसे 'ग' के स्थान पर 'य' लिखा जाना अववा पत्रोके परस्पर चिपक जानेसे वैसा रूप बन जाना एक साधारणमी बात है। एक गुर्वावलीमे एक नामके दो गुरुवोका होना भी कोई मसाधारण वात नहीं है। अनेक गुर्वावलियोमे ऐसा पाया जाता है, जैसे माथुरसघी अमितगतिकी प्रशस्तियोमे उसके पूर्व अमितगति (प्रथम) का होना तथा हरिवशकार जिनसेनकी गुर्वावलीमे उनके पूर्व दूसरे जिनसेनगुरुका भी होना । ऐसी स्थितिमे रामसेन नागसेनके दीक्षित-शिष्य ही नही रहते, फिन्तु पट्ट-शिष्य भी स्थिर होते हैं और साथ ही यह भी मालूप होजाता है कि वे फाठासघके नन्दीतटगच्छ और विद्यागरणके आचार्य थे-विद्या
१. इस गुर्वावलीके प्रार भिक दो पप इस प्रकार हैं .
श्रीमन्नादिजिनोद्गणान् समुदितान्सनम्य तान् पूर्वत श्रीकाष्ठास घसरोजह ससदृशान् रत्नत्रयालंकृतान् । श्रीनन्दीतटगच्छभूपणमणीन् विधागणे यानपीन जम्बूस्वामि-सुभद्रवाहुपुरतो वक्ष्ये गुरून् भक्तितः ॥१॥ पूर्व पचगुरुर्वभूव गुणवान् श्रीगगसेनस्ततो विद्वान्नागगुरुर्वभूव यतिपः श्रीगोपसेनो मुनि : श्रीमन्नोयगुरुर्विवोधयतिराट् श्रीरामसेनो गुरु-। स्तस्मात्कर्मगिरे. पविः समभवत् श्रीनेमिपेणस्तथा ॥२॥