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प्रस्तावना
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और पीछे होनेवाले अनेक गुरुवोका स्मरण पहले किया गया हैअथवा परस्पर गुरुशिष्यका कोई सम्बन्ध व्यक्त नही किया गया और न क्रमश स्मरणादिकी कोई सूचना ही की गई है । ऐसी गुर्वावलियोंमे रामसेनका नाम होते हुए भी उससे अपना कोई प्रयोजन सिद्ध नही होता, अत उन्हें छोड़ा जाता है । यहीं उन्हीं गुर्वावलियो आदिको लिया जाता है जिनमे प्राय. क्रमसे कथन है, क्रमशः कथनकी सूचना की गई है अथवा बहुधा गुरु-शिष्यका सम्बन्ध व्यक्त करते हुए गुरुवोंका स्मरण किया गया है। उनमे एक गुर्वावली काष्ठास घ - नन्दीतटगच्छकी है'; जिसमे काष्ठासंघके चार गच्छों -- नन्दीतट, माथुर, बागड, के नामोका उल्लेख करते हुए तथा नन्दीतटगच्छके कुछ मुनियोंके क्रमशः कथन की सूचना करते हुए लिखा है
लाडबागड-
तत्र नन्दीतट गच्छे श्रीमताद्यनुसारतं ( 2 ) । क्रमेण मुनिनो वक्ष्ये ये रत्नत्रयमडिताः ॥ २१ ॥ अर्हद्वल्लभसुरिश्च श्रीपंच गुरुस शिक. । गगसेनो ततो जातो नाग - सिद्धान्त सेनको ॥२२॥ गोपसेनो गुणाम्मोषि श्रीमनोयगुरुस्ततः । तत्पदमंडने दक्षो ज्ञान-विज्ञान-भूषितः ॥ २३ ॥ रामसेनोऽतिविदितः प्रतिबोधनपडितः । स्थापिता येन सज्जातिर्नारिसिंहाऽभिधा भुवि ॥ २४॥
इस गुर्वावलीमे जिन आठगुरुवका क्रमश उल्लेख किया गया है उनके नाम इस प्रकार हैं-१ अद्वल्लभसूरि २. पचगुरु, ३. गगसेन, ४. नागसेन, ५. सिद्धान्तसेन, ६. गोपसेन, ७. नोयगुरु (१) ८. रामसेन । इन गुरुवोमे सातवें गुरुका नाम अस्पष्ट हो रहा है, जिनके पट्टका
१. यह गुर्वावली ५० परमानन्दजीको नयपुर - शास्त्र भडारके एक गुटके परसे प्राप्त हुई थी, हालमें उनके द्वारा अनेकान्तवर्ष १५ को पूर्वी किरण में प्रकाशित की जा चुकी है ।