________________
}
1
1
४७
प्रस्तावना
देते हुए यह सूचित किया है कि 'पारियात्र देशके अन्तर्गत वारों नगरमे रहते हुए, जिसका स्वामी उस समय शक्ति भूपाल था, यह जबूद्वीपपण्णन्ती सक्षेप से लिखी है ।' अत शक्ति भूपालके समयकी जो अवधि उसका मध्यवर्तीकाल इस जबूद्वीपपण्णत्तीका निर्माणकाल और उससे प्रायः कितना ही पूर्ववर्ती काल इन श्रीविजयगुरुका अस्तित्वकाल समझना चाहिये; क्योकि जबूद्वीपपण्णत्तीके निर्माण समय श्रीविजय मौजूद थे ऐसा ग्रन्थपरसे मालूम नही होता ।
पद्मनन्दिने वाराँ नगरके स्वामी शक्तिभूपालको सम्यग्दर्शन- शुद्ध, कृतव्रतकर्म, सुशीलसंपन्न, अनवरत दानशील, जिनशासनवत्सल, घीर, नानागुणगणकलित, नरपतिसपूजित ( सम्मानित), कलाकुशल और नरोत्तम-विशेषणों के साथ उल्लेखित किया है । इससे वह जिनशासनभक्त कोई अच्छा जागीरदार मालूम होता है । हो सकता है कि 'भूपाल' उसके नामका ही अशहो अथवा उसे टाइटिलके रूपमे प्राप्त हो और राजा या महाराजाकेद्वारा सम्मानित होनेके कारण ही उसे 'रवइस पूजिनो' विशेषण दिया गया हो । इसके समय की अवधिका यद्यपि अभीतक कोई पूरा पता नही चला परन्तु श्रोमोझाजीके 'राजपूतानाका इतिहास' द्वितीय भागसे इतना जरूर मालूम पडा है कि वारानगर जो वर्तमानमे कोटा राज्य के अन्तर्गत है वह पहले मेवाड के अन्तर्गत था और इसलिये मेवाड भी पारिया देशमे शामिल था, जिसे हेमचन्द्र - कोशमे "उत्तरोविध्यात्पारियात्र " इस वाक्यके अनुसार विन्ध्याचलके उत्तरमे बतलाया है । इस मेवाडका एक गुहिलवशी राजा शक्तिकुमार हुआ है, जिसका एक शिलालेख वैशाषसुदि १ स० १०३४ का 'महाड' मे ( उदयपुर के समीप ) मिला है । यदि इस समयके लगभग ही जबूद्वीपपण्णत्तीका निर्माण-काल मान लिया जाय - जिसे अनुचित नही कहा जा सकता; क्योकि ओझाजी
के 'राजपूतानाका इतिहास' के अनुसार गुहिलोतवशके राजा नरवाहनका पुत्र शालिवाहन वि० स० १०३०-३५ के लगभग मेवाडका शासक