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________________ प्रस्तावना उल्लेख करते हैं, जिनका दूसरा नाम 'पडित पारिजात' था और जो अपनी विद्या तथा तपश्चर्याकी दृष्टिसे हेमसेनके समकक्ष थे। उनके पूर्वजचन्द्रकीति और कर्मप्रकृति नामके थे। अपराजितसूरि प० याशाघर से पूर्ववर्ति है, अनगारधर्मामृतकी टीका (स० १३००) मे उनका उल्लेख है । कर्मप्रकृति एक विरल नाम है, और जहां तक सभाव्य है श्रीविजय और उत्कीर्ण लेख उसी एक मुनि (कर्मप्रकृति) का उल्लेख करते हैं। इसका मतलब यह कि श्रीविजयका समय ईस्वी सन् १०७७ से, जोकि एक शिलालेखका समय है, स्वल्पत पूर्व (Slightly earliar)बहुत थोडा ही पूर्ववर्ती-है।' इस लेखद्वारा डा० उपाध्यायजीने मुख्यत चार कल्पनाएं की हैंएक चन्द्रनन्दि और चन्द्रकीतिके एक व्यक्तित्वकी, दूसरी चन्द्रनन्दि और कर्मप्रकृतिके भिन्न व्यक्तित्वकी, तीसरी श्रीविजयके अपराजितसूरिके स्थान पर या उसके अतिरिक्त 'पडित पारिजात' नामकी, और चौथी अपराजितसूरिका समय ईस्वी सन् १०७७ से थोडा ही पूर्व होनेकी । इनमेसे पहली-दूसरी कल्पनाएँ प्राय सभाव्य जान पडती है, नामोके उल्लेखमे कभी-कभी इस प्रकारको तब्दीली हो जाया करती है और इन दोनोकी पुष्टि मल्लिपेणप्रशस्ति नामके शिलालेख न० ५४ (६७) से एक प्रकार हो जाती है, जिसमे बडे-बडे आचार्यों तथा विद्वानोका उल्लेख करते हुए चन्द्रनन्दि नामसे किसीका उल्लेख न करके चन्द्रकीर्तिका उल्लेख किया है और चन्द्रकीतिके अनन्तर पृथक् व्यक्तित्वके रूपमे कर्मप्रकृति मुनिका नाम दिया है । इन दोनो कल्पनाओके आधार पर विजयोदया-टीका-प्रशस्तिके 'चन्द्रनन्दि-महाकर्मप्रकृत्याचार्यप्रशिष्येण' इस अपराजितसूरिके विशेषण-पदका अर्थ प्रचलितअर्थके विरुद्ध यह करना होगा कि वे चन्द्रनन्दि और महाकर्मप्रकृत्याचार्य के प्रशिष्य थेउनके गुरु बलदेव इन दोनों के शिष्य रहे होंगे-और यही अर्थ उपा १. 'महाकर्मप्रत्याचाये विशेषणसे विशिष्ट चन्द्रनन्दिके प्रशिष्य ।
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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