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________________ तत्त्वानुशासन की प्रशस्तिमे उल्लिखित महेन्द्रदेव श्रीनेमिदेवके शिष्य और सोमदेवके बडे गुरुभाई थे, इसमे किसीको भी विवाद नहीं है और न कोई यह कहता हैं कि कन्नौजके राजा महेन्द्रपाल प्रथम या द्वितीयने सोमदेवके गुरु नेमिदेवके पास जिनदीक्षा ग्रहण की थी अथवा सोमदेव महेन्द्रपाल राजाका कौटुम्विक दृष्टिसे छोटा भाई था । यदि कोई ऐसा कहे भी तो वह कोरी कल्पना होगा, इतिहास उसका साथ नहीं दे सकता, महेन्द्रदेव का 'वादीन्द्रकालानल' विशेपण भी कोई राज-विशेषण नही है। प्रत्युत इसके, नीति वाक्यामृतके टीकाकारने टीकाके समय तक महेन्द्रपालको शिवभक्तके रूपमे उल्लेखित किया है और लिखा है कि 'उनकी शिवपार्वती भक्तिकी तत्परताका विचार कर ग्रन्थके 'सोम सोमसमाकार' इत्यादि मगल-पद्यकी प्रथमत शिवपरक अर्थमे व्याख्या की जाती है। ऐसी स्थितिमे रामसेनके शास्त्रगुरुवोमे जिन महेन्द्रदेवका नामोल्लेख है वे श्रीनेमिदेवके शिष्य और सोमदेवके बडे गुरुभाई थे, यह सुनिश्चित होता है। रामसेनके शेष तीन शास्त्र-गुरुवोमे वीरचन्द्र और शुभदेवका कहीसे कोई परिचय प्राप्त नहीं हो सका। चौथे शास्त्रगुरु विजयदेवके विषय मे छान-बीन करते हुए यह खयाल उत्पन्न होता है कि ये विजयदेव सभवत वे ही जान पड़ते हैं, जो 'श्रीविजय' के नामसे अधिक प्रसिद्धि को प्राप्त हैं, जिन्होने भगवती आराधना पर अपने नामानुरूप 'विजयोदया' नामकी टीका लिखी है और जिनका दूसरा नाम अपराजित सूरि है, जो टीकाके साथ दिया हुआ है । अतः टीकामें दी हुई उनकी गुरुपरम्परा आदि पर ध्यान देते हुए श्रीविजयके सम्बन्धमे जो अनुसन्धानकार्य किया गया है और उससे जो कुछ निष्कर्ष निकला है उसे यहां दे देना उचित जान पडता है और वह इस प्रकार है : १ अन तु श्रीमन्महेन्द्रपालदेवस्य परमेश्वरपार्वतीपतौ नितान्तभक्तितत्परता विचिन्त्य प्रथमचराचरगुरुप्रमथनाथमुररीकृत्य व्याख्यायते । २ देखो, अनेकान्तवर्ष १ कि० ४, वर्ष २ कि० ४, ६, ८, ।
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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