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प्रस्तावना
श्री कृष्णकान्त हैंडिकि एम० ए०, वाइस चांसलर गोहाटी यूनिवसिटी (आसाम) ने, अपने 'यशस्तिलक एण्ड इडियन कल्चर' नामक अग्रेजी ग्रन्यके परिशिष्ट (appendix) न. १ मे, सोमदेवके प्रतीहार राज्य कन्नोजके साथ प्रस्तावित सम्बन्ध-विपयमे विचार करते हुए उसे ऐतिहासिक तथ्यके रूपमे स्वीकार नहीं किया। साथ ही सोमदेवने यशस्तिलकमे स्वय अपने सघको 'देवसघ' के नामसे जो उल्लेखित किया है और परभनीके ताम्रशासनमे उनके दादा गुरु यशोदेवको 'गोडसघ' का लिखा है, जिसे लेकर कुछ विद्वानोने यह कल्पना की है कि 'सोमदेव गौड (वगाल)से दक्षिणदेशको जाते हुए मार्गमे कुछ समयके लिये कन्नौज ठहरे होंगे, उसी समय वहाँके राजा महेन्द्रपाल प्रयमने, जिनका समय ई० सन् ८९३ से १०७ है, या अधिकसभाव्य महेन्द्रपाल द्वितीयने, जिनके समयका एक शिलालेख स० १००३ का प्रतापगढ से उपलब्ध हुआ है, उन्हें नीतिवाक्यामृतको रचनाके लिये प्रेरित किया होगा, इस पर विचार करते हुए दोनो सघ-नामोपर भी कितना ही नया प्रकाश डाला है और गौड सघको बगालके सघकी अपेक्षा दक्षिणके गौडोसे संबद्ध सूचित किया है । और अन्तमे लिखा है, कि जहां तक सोमदेवका सवध है उनके इस बगालसे दक्षिकगमन (migration) का किसी भी विश्वसनीय प्रमाणसे, जो अब तक प्रकाशमे आए हैं, समर्थन नहीं होता।
परन्तु नीतिवाक्यामृतको सोमदेवने कन्नौजके राजा महेन्द्रपालकी प्रेरणासे लिखा हो या बिना उसकी प्रेरणाके ही रचा हो, इन दोनोसे अपने मूलविषयपर कोई असर नही पडता, क्योंकि नीतिवाक्यामृत
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? But the supposed connection of Somadeva with the Pratihar court of Kanauj can hardly be accepted as a historical fact, as, unlike his counection with the Deccan, itis mentioned neithier in the colophons to his works nor in the Prabhanı inscniption